Hello Comic Nerds
जालिम मांझा की पहली कॉमिक्स ने सभी वर्ग के पाठकों का दिल जीता था। इसलिए जालिम मांझा के दूसरे अंक The Red lantern house से पाठकों को काफी ज्यादा उम्मीदें थी। यह उम्मीद क्या पूरी हुई? क्या जालिम मांझा का दूसरा अंक पहले अंक जैसा ही मनोरंजन दे पाया? इन सभी प्रश्नों के उत्तर ढूंढने के लिए इस कॉमिक्स को मैंने काफी गहनता से पढ़ा, और अब मैं पेश करने जा रहा हूं आप सबके सामने जालिम मांझा- द रेड लांटर्न हाउस (Zaalim Manjha : The Red lantern house) का dissection.
Credits
- Writer – Sudeep Menon
- Art – Deepjoy Subba
- Coloring – Harendra Saini
- Lettering – Ravi Raj Ahuja
- Graphics design – Ravi X
- Cover Art – Caio Pegado; Renan
- Editor – Ravi Raj Ahuja
Plot
कहानी एक वेश्या घर की है जहां पर लगातार रहस्यमय परिस्थितियों में लोगों की हत्याएं हो रही हैं। इस वजह से वेश्या घर का कारोबार प्रभावित हो रहा है। इस समस्या के निराकरण हेतु उस जगह की मालकिन मैडम लाओ बुलाती हैं जालिम मांझा को। आखिर क्या है उस जगह होने वाले कत्लेआम के पीछे का रहस्य और कैसे सुलझाता है जालिम मांझा उस समस्या को, बस इसी की कहानी इस कॉमिक्स में दी गई है।
Art
जालिम मांझा के पहले अंक में मॉरिशियो का चित्रांकन था। वही इस अंक में चित्र दीपजॉय सुब्बा द्वारा बनाए गए। देखा जाए तो पहली कॉमिक्स में चित्रों में जो रंग निखर कर आए थे, वह इस कॉमिक्स में थोड़ी फीके से लगते हैं। हरेंद्र सैनी जी की कलरिंग में दीपजॉय के चित्र थोड़े दब से गए हैं। इस वजह से यह दूसरा अध्याय पहले जितना लुभावना नहीं दिखता है। फिर भी फ्लैशबैक वाले चित्रों में कलर का प्रयोग एक अलग फील देता है जो कि अच्छा लगता है।
Story
जैसा की जालिम मांझा के पहले अध्याय में देखा जा चुका है, इस किरदार की कॉमिक्स में हिंसा की कोई कमी नहीं होती है। एक बार फिर इस कहानी में बेहिसाब खून बहाया गया है। एक बार फिर कहानी में रहस्य का तड़का लगाया गया है, लेकिन इस बार का ट्विस्ट पहले भाग के मुकाबले कमजोर पड़ता है। कहानी में शुरुआत मैं मांझा को काफी पिटाई खाते दिखाया गया है, जिससे किरदार थोड़ा कमजोर प्रतीत होता है। इसके अलावा इस भाग में मांझा की मसखरी थोड़ी कमजोर लगती है।
लेखक से मुझे यह भी शिकायत है कि कम से कम रिमझिम को तो बख्श देते। बेचारा मांझा अकेला ही रह गया।
Final Verdict
कुल मिलाकर जालिम मांझा एक अच्छी कहानी है, लेकिन पहले भाग जैसा रोमांच नहीं पैदा कर पाती है। एक बार फिर कहानी एक ही कॉमिक्स में खत्म हो जाती है, लेकिन कितना ही अच्छा रहता अगर इस कहानी के साथ साथ मांझा की दुनिया का थोड़ा विस्तार किया जाता। एक पाठक के रूप में मांझा की back story जानने की मुझे बहुत curiosity है। उम्मीद है हमें जल्द ही origin story भी मिलेगी।
I think the only thing that gone against the book is that people were expecting some insight into the background of zaalim manjha. There is currently three types of comic readers in India. 1. Those who want to read a novel in a book plus they like the continuity in a series. 2. Those who just want to read fresh stories without getting stuck into a series. They love one shots only. 3. The people like us who come in between, we like to read both one shot as well as comic series with continuity.
For me the Artwork of the book was just above my expectations. The coloring of the book suited deepjoy style which gave the book vibes of a horror story. I felt like I am in there with zm in laal Mahal.
Another difficult thing to swallow is changing artists, we have already seen two artists in 2 different issues which changes the image you have in your mind of the character. It affects the overall impact of the book as well.