तेरी तलाश में, भटकता फिरा,
तेरे ही अक्स को, मै ढूँढता रहा,
न जाने कितने ज़ख्म है मिले,
न जाने कितने घाव है सिले,
न जाने कितनी ठोकरे पड़ी,
मै सब सह गया, जाना जो तुम मिले!
तेरी ही चाहतो, को खोजता रहा,
तुझे ही ख़्वाबों में, मै सोचता रहा,
न जाने कितनी, बार मै जला,
कभी बर्फ, कभी अंगार पे चला,
न जाने कितनी जिल्लते सही,
जाना जो तुम मिले, तो सब लगे भला!
न जाने कितनी बार मै मरा,
न जाने कितनी बार मै जिया,
न जाने कितनी बार इश्क के,
जाल में फसा, ज़हर पी लिया,
इस दिल को मेरे, बाज़ार कर दिया,
जिस को मिला, वो खेल के गया,
ये टूट-फूट के भी है धड़क रहा,
तेरे ही साथ को था ये तरस रहा!
तेरे ही इश्क को, ये पूजता रहा,
तेरी ही रूह को, ये ढूँढता रहा,
न जाने कितनी बार मै गिरा,
कहने लगा मुझे, जहाँ सिरफिरा,
न जाने कितनी मिन्नतें करी,
जो तुम मिल गए, तो बस मै सिर्फ तेरा!