Hello Comic Nerds
एक अच्छी कहानी की परिभाषा क्या होती है? यह सवाल जितने भी लोगों से पूछेंगे हर कोई अपने तरीके से उसका जवाब देगा लेकिन मूल रूप से एक अच्छी कहानी वही होती है जो शुरू से अंत तक आप को बांध कर रखती है। एक अच्छी कहानी वह होती है जो धीरे-धीरे करके गति पकड़ती है और जब अपने गंतव्य यानी destination पर पहुंचती है तब तक आप अपने आप को उस कहानी का एक हिस्सा मानने लगते हैं।
Time to dissect
एक अच्छी कहानी की शुरुआत करना काफी मुश्किल है, लेकिन एक अच्छी कहानी को शुरू करने के बाद उसे और बेहतरीन अंदाज में अंत करना यह एक सर्वश्रेष्ठ लेखक की पहचान होती है। एक ऐसी ही अच्छी कहानी के तीसरे और अंतिम भाग Mrityuroopa का आज मैं करूंगा dissection और जानेंगे कि क्या वाकई एक अच्छी शुरुआत के बाद शक्तिरूपा बन पाई एक अच्छी कहानी?
Plot
मृत्यु रूपा शक्ति रूपा श्रृंखला का तीसरा और अंतिम भाग है और इस भाग में मुख्यत: कहानी स्त्रीभू महाद्वीप पर ही चलती है। क्या सुपर कमांडो ध्रुव शक्ति रूपा को गलत हाथों में जाने से रोक पाया? क्या देवीना और सिंधु इत्यादि अपने स्त्रीभू की रक्षा कर पाए? बिल्लोरी कौन थी? इस सब षड्यंत्र के पीछे किसका हाथ था? चंडिका का क्या हुआ? शक्ति रूपा प्राप्त करने के बाद नताशा ने क्या किया? इन सभी सवालों का जवाब अपने अंदर समेटे हुए हैं मृत्युरूपा
Story
जैसा कि मैंने शुरू में कहा एक अच्छी कहानी को शुरू करना मुश्किल है मगर उसे एक बेहतरीन अंत देना उससे भी ज्यादा कठिन। और मृत्यु रूपा ने यह साबित किया है की अनुपम सर इस कार्य में पूरी तरह विफल रहे हैं। मृत्यु रूपा की कहानी ना केवल बहुत ही ज्यादा predictable है बल्कि कई जगह तो logic और common sense की हत्या करते हुए दिखाई देती है।
Example 1
उदाहरण के लिए जिस शक्ति रूपा को ब्लैक कैट, ट्विस्टी, और चंडिका से छीनना इतना आसान था, वही शक्ति रूपा नताशा को इतना ताकतवर बना देता है कि वह मिसाइलों को रोकने लगती है। नताशा और डॉनल्ड ट्रंप वाला पूरा सीक्वेंस पढ़ते वक्त सिर में भीषण दर्द होने लगता है। नताशा का मिसाइल पकड़कर व्हाइट हाउस के ऊपर मंडराना, अमेरिकी विमान द्वारा नताशा को धकेल कर दूर ले जाने की कोशिश करना और नताशा द्वारा शक्ति रूपा के पाश में फंसी क्रूज मिसाइल से उस विमान को उड़ा देना, यह पूरा का पूरा सीक्वेंस हास्यास्पद लगता है।
Example 2
इसके अलावा अनुपम जी ने कुछ रोचक ट्विस्ट डालने की कोशिश करी है, जिन्हें आप अंजाम से 20 पन्ने पहले ही समझ जाते हैं। जी हां मैं बात कर रहा हूं बिल्लोरी और विक्टर वाले ट्विस्ट की।
Example 3
ऊपर से मैं अभी तक इस बात को समझ नहीं पा रहा हूं कि नताशा ने पहले तो चंडिका उस श्वेता की जान लेने की कोशिश करें और जब श्वेता मर गई तो उसने उसे किसी लावारिस की तरह तालाब में फिकवा दिया? अगर ऐसे बेस्ट फ्रेंड होते हैं तो भाई दोस्ती पर से विश्वास उठ जाएगा।
Example 4
कहानी के अंत में मुख्य विलेन से लड़ाई चुटकियों में खत्म हो जाती है और ध्रुव का रूप परिवर्तक को मात्र छूकर पहचान लेने वाला एंगल भी बहुत ही कमजोर और मात्र एक तुक्का लगता है।
Art
और अब बात करते हैं आर्ट की। इस तीसरे भाग को भगवत गीता से जोड़कर और यथारूप शीर्षक में लगाकर प्रकाशक ने जो कुछ भी किया है उसे एक पाठक की दृष्टि से अच्छा तो नहीं कहा जा सकता। मृत्युरूपा अपठनीय है। कॉमिक्स के पन्ने तो ऐसे लगते हैं मानो किसी ने चाय गिरा दी हो। अजय देवगन की केसरी जुबान जैसे यह पन्ने आंखों में दर्द पैदा करने में सक्षम है। इस वजह से अनुपम सर की चित्रकला बहुत अधिक दबी हुई और अस्पष्ट लगती है।
चित्रों की अपनी भी खामियां हैं। जैसे कि नताशा व्हाइट हाउस के Lawn में डॉनल्ड ट्रंप से मात्र कुछ फीट ऊपर हवा में लहरा रही है, और शक्ति रूपा में उसने एक 21 फुट लंबी क्रूज मिसाइल को फंसा रखा है, जोकि दिखने में 3 फुट की लग रही है। फिर अचानक एक f-35 विमान उसको धकेल कर ले जा रहा है जिससे यह लगता है कि नताशा तो मानो हवा में करीब 50-60 फीट ऊपर लहरा रही थी। उसके अगले ही फ्रेम में विमान के परखच्चे उड़ जाते हैं और उसका मलबा ठीक वही गिरता है जहां पर श्रीमान ट्रंप खड़े है। कम से कम चित्र बनाने से पहले बेसिक फैक्ट्स की रिसर्च करनी चाहिए।
Time to evolve
कुल मिलाकर मृत्यु रूपा यह स्पष्ट करती है की समय बदल गया है और अब पूर्व की भांति बेसिर पैर की कहानियां नहीं चल पाएगी। कहानियां सीधी हो सरल हो वह कहीं बेहतर है बजाय इसके की कहानी खुद में ही इतना घूम गई हो कि लेखक को भी अंत में अंत करने के लिए जल्दबाजी करनी पड़े। बालचरित से ध्रुव की कहानियां काफी कमजोर होना शुरू हो गई थी और शक्ति रूपा ने प्रेम ग्रंथ के लिए उत्सुकता कम करने का कार्य किया है।
Messed up timeline
अब बात करते हैं सबसे अहम मुद्दे की और वह यह है की अनुपम सर अपनी खुद की पुरानी कहानियों का अध्ययन शायद नहीं करते हैं। जिस प्रकार शक्ति रूपा में दिखाया गया है कि जूपिटर सर्कस में आग लगे मात्र 5 साल हुए है, तो फिर उन्हें यह भी बताना चाहिए की इन 5 साल में श्वेता स्कूल से निकलकर, कॉलेज पास करके, विदेश में हायर स्टडीज करने के बाद वापस कैसे आ गयी? जिन कॉमिक्स पाठकों ने कचरा पेटी में सिर्फ इस बात पर बवाल मचा दिया था कि सूरज को सूरज नाम सोनू ने दिया ना कि ठाकुर बाबा ने, उनसे तो इस गड़बड़झाले पर और मुखर होकर बोलने की उम्मीद की जाती है।
Final Verdict
शक्ति रूपा कॉमिक्स आनन-फानन में निकाली गई है. तीसरा भाग खत्म करते-करते ही यथारूप यथारूप नहीं रह पाया। कॉमिक्स की बाइंडिंग खुलने लगी है और इकिंग वाले पन्ने फ्लैट कलर वालों से दूर जाने की कोशिश कर रहे हैं। हालांकि उनकी यह कोशिश सफल नहीं हो पाएगी क्योंकि शक्ति रूपा को मैं दोबारा पढ़ू, इसकी नौबत ही नहीं आने वाली।
ये शायद अनुपम सर की अब तक की सबसे कमजोर सीरीज़ है, इसकी बहुत बड़ी वजह एडिटिंग में अनुभव की कमी या एडिटिंग का नहीं होना हो सकता है……
Jis time har kahani ghatiya hoti thi uss time par Anupam sir ne Grand Master Robo aur Kirigi Ka Kahar jaisi masterpiece kahaniya di hain. Aur aaj ab storytelling kaafi improved expect krte hain hm log to wo bilkul chicha ke level ki kahani likh daale. Highly Disappointed
Bhai ji aapke reviews kafi sateek hote hain…shaktiroopa abhi padi to nahi…lekin last part ko dekhkar main to sanitize karne wala tha ki kisi ne packing ke time paan ki peek to nahi mar di aur complaint karne ki soch rha tha…baad mein shuru se dekha to pata chala ki woh to pages pe hi shading ki hui hai