स्वयंभू कॉमिक्स एक नई कॉमिक्स कंपनी है जिससे अन्य कॉमिक्स प्रकाशकों को मार्केटिंग के गुर सीखने की जरूरत है। अपने प्रथम अंक के साथ ही उन्होंने कॉमिक्स के पाठकों के मन में और उनकी अलमारियों में एक खास जगह बना ली है, इसलिए जब उन्होंने अपने प्रकाशन के दूसरे कॉमिक्स सतयुग की घोषणा करी, तो जाहिर सी बात है कि पाठकों में उत्सुकता बहुत अधिक थी। उन्हीं पाठकों में से मैं भी एक पाठक हूं। चाहे वह सतयुग का cover reveal हो या फिर सतयुग का title track launch करना, स्वयंभू कॉमिक्स ने इस कॉमिक्स के लिए एक बांधने वाला Ad campaign चलाया, जिससे कि पाठकों के मन में इस कॉमिक्स के लिए बहुत high expectations पैदा हो गई थी।
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सतयुग…old wine, new bottle, rightly aged
वैसे तो मैं इस कॉमिक्स की समीक्षा पढ़ने के तुरंत बाद करने वाला था लेकिन इस बार मैंने निर्णय लिया की कॉमिक्स को सिर्फ एक बार पढ़कर उसकी समीक्षा करने के बजाए इस कॉमिक्स का अध्ययन बारीकी से करने के पश्चात ही इसका रिव्यु अपने ब्लॉग पर डालूंगा।
तो आइए बिना समय बर्बाद किए करते हैं स्वयंभू कॉमिक्स द्वारा प्रकाशित सतयुग कॉमिक्स के हिंदी अंक का dissection.
1. कथानक
कॉमिक्स की कहानी किसी भारतीय हॉरर सीरियल की कहानी जैसी ही है जहां पर एक आत्मा अपना बदला लेती है। इसलिए प्लॉट में कोई नयापन नहीं है लेकिन treatment काफी अच्छा है।
इसकी तुलना आप बॉलीवुड फिल्मों से कर सकते हैं, जहां पर अक्सर कहानी वही होती थी कि एक गरीब लड़का, एक अमीर बाप की लड़की से प्यार कर बैठता था, अमीर बाप को उस प्यार से आपत्ति होती थी और वह गरीब लड़के को पिटवाने की या मरवाने की कोशिश करता था। आखरी में क्लाइमेक्स में लड़ाई झगड़ा होता था और आखिरकार हीरो हीरोइन मिल जाते थे। अब इस पुराने प्लॉट पर कम से कम सैकड़ों फिल्में बनी होंगी लेकिन फिर भी कहो ना प्यार है लोगों के जेहन में आज भी बैठी हुई है। ऐसा इसलिए क्योंकि उस घिसे पिटे प्लॉट को एक नया ट्रीटमेंट दिया गया, जिसकी वजह से कहानी में एक नयापन आया और फिल्म लोगों द्वारा पसंद की गई।
ठीक इसी प्रकार सतयुग का बेसिक प्लॉट कुछ नया नहीं है, लेकिन उसका treatment, उसके डायलॉग और एक एक पैनल में कहानी को जिस प्रकार से build-up किया गया है, वह कहानी को रोमांचक बनाता है और एक कॉमिक्स पाठक की जो expectation थी, उसको पूरा करता है।
हालांकि मुझे कॉमिक्स काफी पसंद आई लेकिन मुझे कहानी थोड़ी rushed लगी। युग द्वारा मुख्य विलेन को डराने के लिए किए गए acts मात्र एक पेज में खत्म हो जाते हैं। मुझे लगता है कि इस element को और explore करने की जरूरत थी जिससे कि कहानी में और रोमांच पैदा होता। The mind games should have been played a bit more longer.
2. चित्रांकन
लेखक सुदीप मैनन और भूपिंदर ठाकुर की इस कहानी को अपनी खूबसूरत चित्र कला से और खूबसूरत बनाया है कायो पेगाडो ने। किरदारों के चेहरों पर आने वाले भाव को, विशेषकर युग के चेहरे पर expressions को बहुत ही बेहतरीन ढंग से दिखाया गया है। फ्लैश बैक पेजस की कलर स्कीम में एक विंटेज feel आती है। साथ ही भूत को ब्लू शेड में दिखाने का स्टाइल काफी अच्छा लगा। अगर सच कहा जाए तो इस कॉमिक्स की आत्मा इस कॉमिक्स के चित्रांकन में बसती है।
कुल मिलाकर this comics is worth buying and adding to your collection, if you are a genuine comics reader. हालांकि मैं यह भी उम्मीद करूंगा कि स्वयंभू कॉमिक्स की टीम अगली बार कहानी को थोड़ा और develop करने का प्रयास करेगी और पन्नों की संख्या में बंधने की गलती नहीं करेगी जिससे कि हम कहानी को और detail मे इंजॉय कर सके.
My verdict – 8/10
Archit Srivastava
Dr Archit Srivastava aka Archwordsmith is a practicing doctor, writer and poet. He has penned over 300+ poems and stories over 26 years from a tender age of 10 years.
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बहुत बहुत धन्यवाद ध्रुव जी, इस समीक्षा के लिए। आप और आप जैसे जितने भी लोग कॉमिक्स समीक्षा के लिए जो कुछ कर रहे है वो अति प्रशंसनीय है। मुझे अपने कॉमिक्स स्कूप वाले दिन याद आ जाते है। जितना मज़ा कॉमिक्स बनवाने में है उतना ही मुझे कॉमिक्स समीक्षा करना भी पसंद आ रहा था। Keep doing this as long as you can do. We will definitely change the Indian comixs scenerio. ☺️
रोचक लग रही है। पढ़ने की कोशिश रहेगी। हो सके तो कॉमिक्स का संक्षिप्त विवरण जैसे पृष्ठ संख्या , टीम इत्यादि ऊपर ही दें। इससे पाठकों को कॉमिक्स के विषय में और अंदाजा लग पायेगा।
Good idea