Hello Comic Nerds
मात्र किसी कहानी का शीर्षक वीभत्स रख देने से या उस कहानी में खूब सारा खून खराबा दिखा देने से फौरन नहीं बनता है। ऐसी ही एक कहानी का dissection करने का दुर्भाग्य मैंने अपने सर पर लिया जिसका शीर्षक है रक्त कथा
Credit
- Writer – Tarun Kumar Wahi
- Art – Aadil Khan
- Color – Pradip Sehrawat
- Editor – Manish Gupta
Art
इस कहानी का आर्ट वर्क मात्र कुछ फ्रेम्स में ठीक-ठाक लगता है। जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ती है ऐसा लगने लगता है कि चित्रकार ने बजट कम होने की वजह से जल्दी-जल्दी चित्रांकन निपटाया है। या फिर इंकिंग और कलरिंग विभाग को बुराड़ी के छोले भटूरे नहीं नसीब हुए थे इसलिए जल्दी में चित्रों का कबाड़ा कर दिया गया।
Story
इस कॉमिक्स में कहानी है एक ऐसे पेन की जिससे न्याय लिखा जाता है लेकिन वह न्याय खूनी होता है। वाकई में यह कांसेप्ट काफी अच्छा है लेकिन इसके चारों तरफ जो कहानी इस कॉमिक्स में बुनी गई है वह गलतियों से भरी हुई है। जैसे कि सिनेमा हॉल में एक-एक करके लोग मरते रहते हैं मगर बगल में बैठे दूसरे शख्स को अहसास तक नहीं होता है। और जब पता भी चलता है तो बाकी किरदार सिनेमा हॉल से ऐसे चलते हुए जाते हैं जैसे कुछ हुआ ही ना हो। मतलब एक भाई मर गया और दूसरा भाई उसकी लाश को वहीं छोड़कर चला गया। कहानी का भावनात्मक पहलू अच्छा है लेकिन कहानी का अंत किसी भी तरह से वह closure नहीं provide करता है जिसकी इस कहानी को जरूरत थी। कॉमिक्स में किरदारों के नाम भी बेहद हास्यास्पद हैं जैसे कि इंस्पेक्टर पोस्टमार्टम और रोपटे बंधु।
Final Verdict
रक्त कथा एक ऐसा कॉन्सेप्ट था जिसे लेकर एक बहुत बांधने वाली कहानी लिखी जा सकती थी लेकिन lazy writing ने एक बेहद निराशाजनक output दिया है जिसे पढ़ना और साथ में अधपके चित्रों को देखना, आपकी आंखों में एक रक्त कथा लिख सकता है।