Hello Comic Pappus
कुछ कहानियां ऐसी होती हैं जिन्हें पढ़ने वाला स्वयं को ठगा हुआ महसूस करता है। ऐसी कहानियां जो शायद अगर ना लिखी जाती तो इस संसार की समृद्धि के लिए बेहतर होता, या फिर अगर लिखने के पीछे कोई बहुत बड़ी मजबूरी थी, तो कम से कम उन्हें सही किरदार के लिए लिखा जाता। ऐसी ही एक कहानी पढ़ने का दुर्भाग्य मुझे प्राप्त हुआ।
और आज मैं करने जा रहा हूं राज कॉमिक्स बाय मनोज गुप्ता द्वारा प्रकाशित इस कॉमिक्स का dissection जिसका शीर्षक है पप्पू डोगा (Pappu Doga).
Credits
- Writer – Tarun Kumar Wahi
- Art – Mayur Sekia
- Inking – Sagar Thapa
- Color FX – Praveen Singh
- Calligraphy – Nitish Sharma/Neeru
- Editor – Manoj Gupta
Plot
पप्पू डोगा (Pappu Doga) कहानी है एक ऐसे हैरतअंगेज वाक्ये की जहां एक सुबह मुंबई वासियों को रहस्यमई परिस्थितियों में मिलता है उनका रक्षक। अपनी कलाई की नस काट कर बेसुध पड़ा होता है डोगा, और पीछे दीवार पर लिखा होता है डोगा का सुसाइड नोट। तो क्या वाकई में डोगा ने आत्महत्या कर ली है? इसी रहस्य को सुलझाती कहानी है पप्पू डोगा।
Art
कामिक्स का आर्ट बहुत ही साधारण है। इंस्पेक्टर चीता किसी इटालियन विदूषक सा दिखता है तो वही मोनिका बिलकुल काम वाली बाई सी दिखती है। कमिश्नर ऑफ मुंबई पुलिस की यूनिफॉर्म किसी भी कोण से पुलिस की नही लगती है। ऐसा प्रतीत होता है की रेलवे के किसी TT ने गलती से काले की जगह खाकी पोशाक बनवा ली हो। डोगा की कॉमिक्स में इतना खराब आर्ट आज तक नही देखा और सनद रहे की मैने सुरेश डीगवाल जी द्वारा चित्रित डोगा को भी देखा है।
Story
कामिक्स की कहानी के बारे में क्या कहूं? अव्वल तो ये डोगा की कॉमिक्स नही है। डोगा तो बस इस कहानी में guest appearance में है।
दूसरा इसका villain पी पी यानी पैसे का पीर है। एक तो नाम से ही कहानी की quality पता चलती है। दूसरा इस villain की बैकस्टोरी पढ़ के ऐसा लगता है की ये पात्र गलती से गमराज की कॉमिक्स से डोगा की कॉमिक्स में घुस गया है।
तीसरी और रही सही कसर पप्पू ने कर दी है। उसकी कहानी पढ़ कर किताब अपने मूह पर मारने का मन करता है।
पूरी कहानी लड़कियों को impress करने के इर्द गिर्द ही घूमती है। और कही से भी डोगा की दुनिया की नही लगती है।
आत्महत्या वाला एंगल 12 वे पन्ने पर ही खुल जाता है और उसके बाद पाठक के मूंह से इतनी बार उफ्फ निकलता है, जितनी बार इस कॉमिक्स में नही लिखा होगा। और ये उफ्फ की ट्रेन दर्द की नही बल्कि अपने ₹200 बर्बाद होने की वजह से निकलती है।
Final Verdict
पप्पू डोगा एक ऐसी कहानी है जिसे लिखना तो दूर, सोचना भी गुनाह होना चाहिए। ऊपर से ऐसा आर्ट वर्क जिसे देख कर डोगा की भी चीख निकल ही गई (भले ही वो पप्पू था)। पप्पू डोगा पढ़ने के बाद मैं हाथ जोड़ कर मनोज जी से निवेदन करता हूं की