जी हां एक बार फिर आपका स्वागत है nauseating nostalgia नामक इस श्रृंखला में जहां हम बात करेंगे उन कॉमिक्स की जिनके रिप्रिंट केवल जुनून के नाम पर बिक रहे हैं। जबकि इनके अंदर की कहानी ऐसी है कि खुले दिमाग से पढ़ने वाला इन्हें पढ़कर निसंदेह अपना सर पीट लेगा।
इसी श्रृंखला के अंतर्गत आज हम करने जा रहे हैं राज कथाएं संख्या आठ का dissection
1. मृगकुण्ड
लेखक तरुण कुमार वाही द्वारा लिखी गई इस कहानी में चित्रांकन किया है भालचंद्र मांडके जी ने। चित्रांकन औसत है और कहानी भी औसत से थोड़ी बेहतर। कहानी की शुरुआत हालांकि काफी रोमांचक है और एक रहस्य को लेकर चलती है मगर जैसे-जैसे कहानी अपने अंत की तरफ बढ़ती है, लेखक कहानी में कुछ ज्यादा ही परते जोड़ता चला जाता है। नतीजा यह की कहानी के आखिरी में चित्र संवादों से पूरी तरह ढक जाते हैं। संवाद भी ऐसे जिन्हें पढ़कर लगता है कि लेखक ने कोई अंत लेकर कहानी लिखना शुरू नहीं किया था और जैसा जैसा दिमाग में विचार आता गया उन्होंने वैसा ही लिखने का फैसला कर लिया।
2. शैतानों के नाना
बेदी जी के लुभावने चित्रांकन से सजी हुई इस कहानी को लिखा है सरिता भारती जी ने। अब आप मानना चाहे तो मान सकते हैं के इस कॉमिक्स में कोई कहानी है मगर सच यह है कि 32 पन्नों में फैली इस कथा में ना कोई ढंग का आगाज है और ना ही कोई अंत। कहानी के शुरू में मुख्य किरदार चंगू मंगू को अव्वल दर्जे का मूर्ख दिखाया गया है लेकिन कहानी आगे बढ़ते बढ़ते लेखिका भूल गई कि वह क्या लिख रही थी और चंगू मंगू होशियार चंद के पोते बन गए। कहानी में कुछ भी होता रहता है और अंत में लेखिका ना जाने क्या सोचकर सभी किरदारों को सुपर कमांडो ध्रुव बनाने का फैसला ले लेती है।
3. शीशे का महल
जयप्रकाश जगताप के खूबसूरत चित्रों कुछ शब्दों से सजाया है तरुण कुमार वाही जी ने। कहानी राजा महाराजा और राक्षसों को लेकर बुनी गई एक चिर परिचित गाथा है जो राक्षसों के अत्याचार से शुरू होती है, और राजकुमारी के अपहरण से होते हुए एक साधारण युवक के असाधारण कारनामों को बयां करती हुई उस युवक और राजकुमारी के ब्याह पर खत्म होती है। हालांकि इस कहानी में potential काफी ज्यादा था लेकिन 32 पन्नों के बंधन में बंध कर वाही जी इसे पूरी तरह निखारने में असमर्थ रहे। कहानी का अंत इस कहानी की सबसे कमजोर कड़ी है पर फिर भी यह कहना गलत नहीं होगा कि यह कॉमिक्स इस संग्रह की सबसे सही कहानी है।
4. एक से बढ़कर एक
किसी भी कहानी तो कहने के पीछे एक मंशा होनी चाहिए। या तो आप का उद्देश्य केवल हास्य एवं मनोरंजन हो या फिर कोई शिक्षा प्रदान करना। लेकिन इस कहानी में हास्य जबरदस्ती ठूसा हुआ सा लगता है और पाठकों के लिए कोई सीख भी नहीं दिखाई देती है। लेखक विजय द्वारा लिखित और त्रिशूल कॉमिको आर्ट के खूबसूरत चित्रों से सजी तीन मूर्ख भाइयों की यह कहानी मूर्खता पर एक पाठ पढ़ाने की कोशिश तो करती है लेकिन पूरी तरह विफल रहती है। हालांकि कहानी के बीच में आपको ऐसा लग सकता है की एक धमाकेदार अंत होने वाला है लेकिन अंत पर पहुंचने पर वही एहसास होता है जो एक पानी में डूबे हुए मिर्ची बम की सुतली में आग लगाने पर मिलता है।
Final Verdict
राज कथाएं संख्या 8 मैं मात्र एक कहानी ऐसी है जिसके रिप्रिंट पढ़ने योग्य है किंतु शेष तीन कहानियां राज कॉमिक्स के उस काल की गाथा कहती हैं जब नागराज और सुपर कमांडो ध्रुव ने इस प्रकाशन को डूबने से बचा रखा था। क्योंकि अगर राज कॉमिक्स के पास वह तारणहार नहीं होते तो ऐसी कहानियों के साथ इनका हश्र भी नूतन कॉमिक्स इत्यादि जैसा होना तय था।