This poem is written by Mr Ganesh Chandra Srivastava. He is a retired banker and enjoys writing in his leisure time. This poem is about the turmoil that goes on in heart of a poet.
प्रेम दीवानी दर-दर भटके, छोड़ दिया घर बार,
बदकिस्मती है साजन मेरी, मिला नहीं तेरा प्यार,
दिल पर राज़ करोगी जानम, को ये कैसा उपहार,
मन- मंदिर के बंद कर दिए, क्यों सुन्दर द्वार ?
जीवन हो सुख का सागर, ये है दुआ हमारी,
रंग- बिरंगे फूलों से, महके जीवन फुलवारी,
अपना क्या? जब जीवन का ही, है नहीं कोई आधार,
मन- मंदिर के बंद कर दिए, क्यों सुन्दर द्वार ?
रूप गुड़ों को कोई न चाहें, पैसे की दुनिया सारी,
अस्मत गिरवी रखने में, क्या शर्म, हया, लाचारी,
निर्धन की मजबूरी, दौलत खोरों का व्यापार,
मन- मंदिर के बंद कर दिए, क्यों सुन्दर द्वार ?
एक आरज़ू दिल में ये है, जब उठे मैयत मेरी,
अंतिम ख्वाहिश पूरी करना, कैसी भी हो मजबूरी,
कफ़न से आ ढक दे मेरा, उजड़ा हुआ संसार,
मन- मंदिर के बंद कर दिए, क्यों सुन्दर द्वार ?