Comic/Book Dissection

लंबू मोटू और ड्रैकुला….प्रथम तीन अंक की समीक्षा

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  1. मुझे लगता है ऐसी कॉमिकस एक के बाद एक पढ़ना अपने पढ़ने के अनुभव को खराब करना ही है। यह चीज मैंने बाँकेलाल के कॉमिक में भी देखा गया है। चूँकि मूल रूप से यह कॉमिक कुछ समय के अंतराल पर आई रही होंगी तो उस वक्त पाठकों को उतनी बुरी नहीं लगी होंगी। खैर, अगले भाग में वक्त देकर पढ़िएगा। ये कॉमिक तो मैंने नहीं पढे हैं लेकिन इस शृंखला के एक कॉमिक में मैंने आर्ट के बीच ये फर्क देखा है। कुछ जगह अच्छा है और कुछ जगह ऐसा जैसे आलस के कारण आर्टिस्ट ने मन मारकर काम किया हो।

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