ड्रैकुला। एक ऐसा किरदार जिसके साथ भारत ही क्या, दुनिया के हर कॉमिक्स प्रकाशक ने खेलने का प्रयत्न किया होगा। इस किरदार में कुछ ऐसा आकर्षण है की इसके इर्द गिर्द कहानी बुनने में एक अजीब से आनंद की अनुभूति होती है। राज कॉमिक्स, मनोज कॉमिक्स और बुल्स आई के प्रयासों का रसपान करने के बाद, उमाकार्ट के माध्यम से मुझे जब यह पता चला की एक वक्त डायमंड कॉमिक्स ने भी इस किरदार को लेकर १ नही, 2 नही बल्कि पूरे ९ कॉमिक्स पेश किए थे तो मैं खुद को ऑर्डर करने से रोक नही पाया। हालाकि सच कहूं तो मुझे डायमंड कॉमिक्स से ज्यादा उम्मीद नहीं थी क्युकी प्राण जी द्वारा रचे किरदारों के अलावा मैने न ज्यादा डायमंड कॉमिक्स पढ़ी है और न ही मुझे कोई अन्य किरदार या कॉमिक्स बहुत जची है।
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लंबू मोटू और ड्रैकुला….प्रथम तीन अंक की समीक्षा
फिर भी अपने अंदर कुलबुलाते कॉमिक्स के चरसी कीड़े को शांत करने के लिए हमने अभय जिंदल भाई को फोन मिला के सारी ९ कॉमिक्स मंगवा ली।
अब कॉमिक्स तो आ गई किंतु यह नहीं पता था कि पहला अंक कौन सा है और आखिरी कौन? फेसबुक और व्हाट्सएप पर कॉमिक्स के सह नशेड़ियों के झुरमुट में पूछते पाछते आखिर ये पता चला की पहली कहानी कौन सी है। लेकिन जब तक यह पता चला तब तक हमारे सफर की तारीख सामने आ गई। अब सफर भी लंबा था। पूरे २० घंटे बस में बिताने थे। तो हमारे अंदर के जनूनी ने समझाया की एक पंथ दो काज कर लो। बस, इसी तरह हमारे पिट्ठू बैग में 9 कॉमिक्स भी घुस गई और सफर के पहले पड़ाव में हमने पढ़ ली इस लंबी series की पहली कड़ी “ड्रैकुला से टक्कर”
वैसे ओरिजिनल प्लान तो केवल प्रथम अंक की समीक्षा करने का था लेकिन झोंक में हम अगले 2 अंक भी पढ़ ले गए इसलिए हमने सोचा की प्रथम तीन अंको की एक सामूहिक समीक्षा करना ठीक होगा।
अब इससे पहले की बस हरिद्वार में प्रवेश करे, चलिए करते है इस कॉमिक्स का dissection।
1. कथानक
For a change इस कहानी में ड्रैकुला श्रीमान स्टोकर की कहानी से उठाया गया पात्र नहीं है। यह एक मामूली दुष्ट आत्मा है जो अपने हत्यारों से बदला लेती है और एक पिशाच आत्मा के रूप में शक्तियां प्राप्त करके पूरी दुनिया को पिशाच में convert कर देती है। कहानी बहुत ही fast paced है किंतु कहानी में लंबू मोटू के ना होने से भी कोई फर्क नहीं पड़ता। इंस्पेक्टर अंकल का किरदार मुझे समझ ही नहीं आया। कुल मिलाकर कहानी दुष्ट आत्मा और पुण्य शक्तियों के बीच में होने वाले टकराव की है। पहली कॉमिक्स की कहानी पढ़ने में अच्छी लगती है क्योंकि कहानी में एक नयापन है किंतु अगले दोनों भाग में कहानी को मात्र recycle किया गया है इसलिए कहानी बेहद ही बोरिंग हो जाती है।
2. चित्रांकन
अब बात करते हैं कॉमिक्स के आर्ट की। वैसे तो पुरानी कॉमिक्स के आर्ट पर मैं समीक्षा करना सही नहीं समझता क्योंकि उस जमाने के हिसाब से आर्ट किस तरह को नापना मुनासिब नहीं होगा। किंतु इस कॉमिक्स के कुछ पैनल्स ने मुझे काफी अचंभित किया। विशेषकर श्रृंखला के तीसरे भाग लंबू मोटू और नर्क का ड्रैकुला मैं कुछ पैनल्स में आर्ट डायमंड कॉमिक्स द्वारा प्रकाशित फैंटम की कॉमिक के आर्ट के जैसा दिखता है वही उसके अगले ही पैनल में आर्ट बिल्कुल ही अलग स्तर का हो जाता है। यह देख कर समझ नहीं आता है कि आखिर एक ही आर्टिस्ट एक ही पृष्ठ के दो अलग पैनल्स में अलग ड्राइंग कैसे कर सकता है।
आप में से किसी को भी यह रहस्य समझ आए तो कृपया कमेंट सेक्शन में बताने की कृपा करें।
कुल मिलाकर तीनों कॉमिक्स में से पहली कॉमिक्स पढ़ने में आनंद आया, दूसरी में थोड़ा सा बोरियत महसूस हुई, लेकिन तीसरी कॉमिक्स सिर दर्द दे गई।
My verdict
1. ड्रैकुला से टक्कर — 7/10
2. पुरानी हवेली का ड्रैकुला — 5/10
3. नर्क का ड्रैकुला — 2.5/10
Archit Srivastava
Dr Archit Srivastava aka Archwordsmith is a practicing doctor, writer and poet. He has penned over 300+ poems and stories over 26 years from a tender age of 10 years.
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अंगारा origins... इतना original भी नही लिखना था
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मुझे लगता है ऐसी कॉमिकस एक के बाद एक पढ़ना अपने पढ़ने के अनुभव को खराब करना ही है। यह चीज मैंने बाँकेलाल के कॉमिक में भी देखा गया है। चूँकि मूल रूप से यह कॉमिक कुछ समय के अंतराल पर आई रही होंगी तो उस वक्त पाठकों को उतनी बुरी नहीं लगी होंगी। खैर, अगले भाग में वक्त देकर पढ़िएगा। ये कॉमिक तो मैंने नहीं पढे हैं लेकिन इस शृंखला के एक कॉमिक में मैंने आर्ट के बीच ये फर्क देखा है। कुछ जगह अच्छा है और कुछ जगह ऐसा जैसे आलस के कारण आर्टिस्ट ने मन मारकर काम किया हो।