Patriotism sells! But sometimes the earnings go to Army welfare fund. ऐसा ही कुछ किया था राज कॉमिक्स ने जब उन्होंने आनन-फानन तिरंगा के एक विशेषांक Kargil की घोषणा करी, जिसकी बिक्री से होने वाली सारी कमाई आर्मी वेलफेयर फंड में दी जाने की बात कही गई। इस कॉमिक्स की रिकॉर्ड तोड़ बिक्री हुई और उस वक्त वाकई में यह कॉमिक्स काफी पसंद आई थी। लेकिन वह वक्त और था वह दौर और था। उस समय देशभक्ति की भावना इतनी तेज थी की कहानी से ज्यादा कॉमिक्स निकालने के उद्देश्य ने दिल जीत लिया था। पर आज मैं करने जा रहा हूं उस विशेष विशेषांक का dissection.
Credits
- Writer – Hanif Azhar & Anupam Sinha
- Art – Dileep Chaube
- Inking – Vineet Siddharth
- Cover design and Coloring – Dheeraj Verma
- Editor – Sanjay Gupta
Plot
एक गद्दार इंटेलिजेंस ऑफिसर का पीछा करते-करते तिरंगा जा पहुंचता है कश्मीर और वहां उसे लेना पड़ता है एक off the books rescue mission का चार्ज। इस मिशन के तहत तिरंगा को जाना पड़ेगा सीमा पार पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में। वह भी एक ऐसे समय में जब करगिल का युद्ध अपने चरम पर है।
Art
दिलीप चौबे जी का आर्ट मुझे कभी भी खास पसंद नहीं आया। लेकिन यह हमारी किस्मत है कि इस विशेषांक में उन्होंने तिरंगा के तीन दर्जन abs नहीं बना दिए। पहाड़ी इलाकों के दृश्य ठीक-ठाक बने हैं लेकिन धीरज वर्मा जी के कलर इफेक्टस ने उन्हें काफी हद तक निखारने का काम किया है। Height and depth का perspective काफी flawed है, खास करके उन दृश्यों में जहां पर तिरंगा या उसका कोई साथी पहाड़ की चोटी पर हो और नीचे से दुश्मन उन पर वार कर रहा हो। कहीं तो ऐसा लगता है कि तिरंगा माउंट एवरेस्ट की चोटी पर बैठा है तो वहीं अगले फ्रेम में ऐसा प्रतीत होता है कि मानो वह मजनू के टीले पर बैठकर अपनी शायरियां कह रहा हो।
धीरज वर्मा जी द्वारा बनाया गया कवर पेज काफी हटकर है हालांकि कवर पर पाकिस्तानी सैनिकों और घुसपैठियों को स्थान देना समझ के परे है।
Story
इस कॉमिक्स की कहानी शुरू बहुत promising way मे होती है लेकिन जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ने लगती है, उसका स्तर तिरंगा की चिर परिचित कॉमिक्स की तरह होता जाता है। कहानियां जिनमें लॉजिक लगाना सख्त बेवकूफी माना जाएगा। उदाहरण के लिए तिरंगा और उसकी टोली एक पाकिस्तानी कैंप को घेरती है, वह कैंप के उत्तर में distraction create करते है और अगले ही फ्रेम में दक्षिण से हमला कर देते है। पहाड़ियों से घिरी घाटी में इतनी जल्दी एक स्थान से दूसरे स्थान पर बिना नजर में आए पहुंचना असंभव है। कहानी में बलिदान की अतिशयोक्तिया कूट कर भरी गई है। अपना तिरंगा भी दर्जनों गोली खाकर बिल्कुल डोगा बना डटा रहता है। कहानी का जो सबसे हैरतअंगेज पहलू है वह है तिरंगा का अपनी ढाल की मदद से पाकिस्तानियों के सर काटना। पूरी कॉमिक्स में तिरंगा ने ढाल की मदद से 11 सर तन से जुदा किए हैं। अर्थात हिंसा इतनी कि डोगा भी महात्मा लगने लगे। कहानी में और भी कई ऐसे वाक्य हैं जो लॉजिक से परे हैं। चाहे वह तिरंगा और उसके साथियों के पास मेकअप किट उपलब्ध होना हो या उनका भेड़ की खाल पहन कर एक पाकिस्तानी जनरल की गाड़ी रोकना हो, लेखक ने दिल खोलकर creative liberty का इस्तेमाल किया है जो काफी over the top है।
Final Verdict
करगिल (Kargil) वाकई में एक संग्रह करने लायक कॉमिक्स है। लेकिन वह तभी जब आपके पास इसकी मूल प्रति हो क्योंकि उससे आपको यह एहसास रहेगा की आपका पैसा सेना राहत कोष में गया है। उस मूल प्रति के साथ एक इतिहास जुड़ा है और केवल इसी वजह से यह एक संग्रह करने योग्य कॉमिक्स है अन्यथा कहानी तथा आर्ट वर्क के आधार पर यह एक बेहद औसत विशेषांक है।