Diamond Comics कभी भी प्राण साहब द्वारा रचित किरदारों जैसे कि चाचा चौधरी, रमन, पिंकी, बिल्लू इत्यादि की छाया से बाहर निकलने में सफल नहीं हुई। पूरा प्रकाशन प्राण साहब के लीजेंडरी किरदारों पर इस कदर निर्भर हो गया कि कई अच्छे किरदार apathy का शिकार होकर कॉमिक्स की भीड़ में कहीं खो गए। इन्हीं में से एक किरदार था दाबू जो कि एक बेहद बहादुर एवं जासूसी दिमाग रखने वाला लड़का था।
दाबू के पहली कॉमिक्स जो मैंने पढ़ी थी, उसका नाम था दाबू और रानी रुक्मणी। यह कॉमिक्स मुझे खासी पसंद आई थी, लेकिन बाजार में दाबू की कॉमिक बमुश्किल ही मिलती थी, जिसकी वजह से इक्का-दुक्का कॉमिक्स के अलावा मुझे कभी भी इस किरदार को पूरी तरह से पढ़ने और समझने का आनंद नहीं प्राप्त हो सका।
जो चंद कॉमिक से मुझे पढ़ने का सौभाग्य प्राप्त हुआ उनमें से एक कॉमिक्स जिसे मैंने आज पड़ा उसका शीर्षक है दाबू और बायोकपन के बौने। तो आइए करते हैं इस कॉमिक्स का रिव्यू।
डायमंड कॉमिक्स के जो सबसे खराब बात मुझे लगती थी कि उनकी कॉमिक्स में लेखक अथवा चित्रकार तक का नाम कई बार नहीं प्रकाशित होता था या अगर होता भी था तो शायद कॉमिक से किसी ऐसे पन्ने पर जहां पर एक आम पाठक की नजर कभी न जाए। जहां तक मेरा अनुमान है कि इस कहानी को लिखने में भी प्राण साहब का ही योगदान रहा होगा। ऐसा मैं कहानी की सरलता और Convenient story telling के आधार पर कह रहा हूं।
Convenient story telling में कहानी इस प्रकार से आगे बढ़ती है की हर समस्या का समाधान अगले ही पैनल में हो जाता है। इस प्रकार के लेखन का एक उदाहरण सुपर कमांडो ध्रुव की कॉमिक्स में भी देखा जा सकता है जहां पर सुपर हीरो को अपने काम का सामान हमेशा युद्ध स्थल के आस-पास ही मिल जाता है।
दाबू की यह कहानी भी इसी प्रकार के लेखन का एक prime example है। इस कहानी में एक सुदूर ग्रह के दो अपराधी धरती पर अपने यान से आते हैं और धरती पर कब्जा करने के लिए निकल पड़ते हैं। दाबू और उसके प्रोफेसर अंकल इस यान को उतरते हुए देख लेते हैं और उनके जाते ही यान में घुसकर उनकी ही टेक्नोलॉजी हथिया लेते है। फिर कहानी आगे बढ़ती है और दाबू किस प्रकार दोनों का सामना करता है और उनके इस विश्व विजय के अभियान को विफल करता है यह इस 40 पेज की कॉमिक्स में दिखाया गया है।
कथानक बेहद सरल है और और एक समान गति से कहानी आगे बढ़ती है। कहानी में हिंसा दिखाई गई है लेकिन कहीं पर भी किसी प्रकार से यह एहसास नही होता है के विलेन अपने मंसूबों में कामयाब हो जाएगा।
कॉमिक्स का चित्रांकन डायमंड कॉमिक्स के नियमित स्तर से भी थोड़ा कम ही है जो कि मेरी उस बात को सही साबित करता है, कि डायमंड कॉमिक्स ने कभी इन किरदारों को उस गंभीरता से नहीं लिया जिस प्रकार से चाचा चौधरी, बिल्लू और पिंकी को लिया गया।
यहां पर मैं विशेष उल्लेख कॉमिक्स के कवर का करना चाहूंगा, जो कि डायमंड कॉमिक्स के हिसाब से कई गुना हिंसक बना है और कॉमिक्स के लिए उत्सुकता बढ़ाता है।
कुल मिलाकर यह कॉमिक्स छोटे बच्चों के लिए एक बार पढ़ने के लिए ठीक है लेकिन आज के परिपक्व पाठक को यह कॉमिक शायद पसंद नहीं आएगी।
My Verdict – 4/10