Cow– The mother animal. The giver, the provider and the caretaker. Her innocence finds her caught in a war where no one actually cares for her. This poem is dedicated to mother cow as she struggles to live a life of dignity.
सड़कों पर भटके गौ माता
और गौशाला तो खाली है
नेता और अधिकारी की तो
हो रही कमाई काली है
हिंदुत्व का राग अलाप रहे
पर हिंदू का ना कर्म करें
ऐसे हिंदू के कर्मों से
देखो स्वयं हिंदू धर्म डरे
यहां यदुवंशी ही लुटेरा है
और ग्वाला चारा चुरा रहा
भूखी गौ माता का नाम लिए
हर कोई अपना कमा रहा
गौमाता किस से दुख कहे
किसके आगे वो गुहार करें
जिसे दूध दिया जिसे बड़ा किया
जब वो ही उस पर प्रहार करें
बचपन में सब ने दूध पिया
पर अब वो काट के खाता है
गौ माता की ममता का वो
कुछ ऐसे कर्ज चुकाता है
हिंदू का खून जलाने को
वो मां का भक्षण करता है
गौ माता सबसे पूछ रही
कोई क्यों नहीं रक्षण करता है
कोई मार के भोग लगा रहा
कोई मार के उसको भगा रहा
गौ माता की आंखों में हर कोई
अश्रु का झरना जगा रहा
निशब्द और निर्दोष वो मां
फिर भी मां धर्म निभाती है
कर पोषित हम सबको हर पल,
कही लालच तो कहीं नफरत में, गौ माता मारी जाती है