कभी-कभी कोई कॉमिक्स पढ़ने के बाद समझ में नहीं आता की उसके बारे में अपनी बेबाक राय देना क्या सही होगा या नहीं। ऐसा इसलिए क्योंकि यह कुछ कॉमिक्स या graphic novel कह सकते हैं, पाठकों के मन में एक cult status रखती है। इनके बारे में अपनी honest opinion देना अपने सोशल मीडिया या फिर अपने blog पर खुलेआम गालियों को निमंत्रण देने जैसा होता है। इस कॉमिक्स को लेकर मैं काफी सोच-विचार के बाद इस नतीजे पर पहुंचा, कि भाई जो भी हो, बोलना तो सच ही है।
और बस इसी सत्य की शक्ति के साथ आज करूंगा याली ड्रीम्स क्रिएशन द्वारा प्रकाशित graphic novel, कारवां प्रतिशोध का honest dissection.
Story – Shamik Dasgupta
Art – Gaurav Srivastava, Vikas Satpathi, Abhilash Panda
1. चित्रांकन
जी हां आज अपने routine pattern को तोड़ते हुए मैं पहले इस कॉमिक्स के चित्रांकन की समीक्षा करना चाहूंगा।
यह कॉमिक्स 3 अध्याय में विभाजित है.
प्रथम अध्याय – भोर का चित्रांकन गौरव श्रीवास्तव ने किया है। इनकी चित्रकला हमेशा ही लाजवाब रही है और इस कॉमिक्स में भी उन्होंने निराश नहीं किया है। विशेषकर महिला किरदारों का उनका चित्रांकन पुरुष पाठकों के मन में एक अलग ही माहौल बनाने का दम रखता है।
अध्याय 2 – सांझ का चित्रांकन विकास सतपति ने किया है। मुझे यहां पर यह कहने में कोई शंका नहीं है कि हालांकि इस अध्याय में भी चित्रांकन लाजवाब है लेकिन गौरव श्रीवास्तव के मुकाबले वह कम लगता है।
अध्याय 3 – रात का चित्रांकन अभिलाष पांडे ने किया है जोकि तीनों अध्याय में सबसे अधिक कमजोर लगता है।
कॉमिक्स के तीनों अध्याय का चित्रांकन तीन अलग-अलग कलाकारों से करवाने के चक्कर में कॉमिक्स के मुख्य पात्रों आसिफ और दुर्गा कि चेहरे की बनावट इतनी ज्यादा बदल जाती है कि कभी-कभी यह लगता है कि मानो किरदार ही बदल गया हो। जहां अध्याय 1 में आसिफ 25-30 साल का नौजवान लगता है, वही अध्याय 3 में कई फ्रेम्स में वह 17-18 साल का युवा बालक प्रतीत होता है।
कुल मिलाकर कॉमिक्स को अगर कोई aspect पढ़ने योग्य बनाता है तो वह इसका चित्रांकन है।
2. कथानक
चित्रांकन वाले हिस्से में मेरे आखरी कथन, कि इस कॉमिक्स में एकमात्र saving grace इस कॉमिक्स की art है, से शायद काफी लोग असहमति व्यक्त करेंगे लेकिन मेरी नजर में इससे ज्यादा वाहियात कहानी तो मैंने जंबू और अंगारा की कॉमिक्स में भी नहीं पढ़ी होगी। एक तरफ तो कॉमिक्स में वैंपायर और जोंबीज की ऐसी मिलावटी बिरयानी बनाने की कोशिश की गई है कि एक चम्मच भी गले के नीचे नहीं उतरता है। ऊपर से गोरखपुर शहर के एक काल्पनिक विराट गंज गांव की सेटिंग में जो सोशल कमेंट्री करने की कोशिश की गई है, वह बेहद cringeworthy है। गोरखपुर के ठाकुरो द्वारा हिंदू जागृति संगठन के नाम पर अवैध हथियार रखना और ISIS के खतरे को काल्पनिक बता कर व्यंग करना, यह लेखक के द्वारा पाठकों पर अपने राजनीतिक विचार थोपने की एक निम्न स्तरीय कोशिश लगती है। कॉमिक्स का उद्देश्य स्वस्थ मनोरंजन होना चाहिए, उस के माध्यम से ज्ञान देना अथवा सामाजिक कुरीतियों पर चोट करना तो समझ में आता है, लेकिन black को white और white को black paint करना यह एक एजेंडे की तरफ इशारा करता है। शमिक दास गुप्ता को डोगा की कॉमिक्स लिखने वालों से सीखने की आवश्यकता है, जिसमें धर्म के नाम पर की जाने वाली नफरत की राजनीति को बेहद खूबसूरती से tackle किया जाता है. खैर, अब कहानी के ऊपर वापस लौटते है। ऐसा प्रतीत होता है कि लेखक ने यह कहानी लिखते समय कुछ सोचा नहीं था, बस वो लिखते चले गए और जैसा जैसा उनके दिमाग में आता गया वह बिना पीछे के पन्नों को पलटा उसे कहानी में उतारते चले गए। एकता कपूर के किसी धारावाहिक की तरह मरे हुए किरदार जिंदा होते जाते हैं, मुख्य किरदार बिना तर्क के कोई भी निर्णय ले लेते हैं, भैरो सिंह तकरीबन ब्लेड जैसे अच्छे वैंपायर बन जाते हैं, वैंपायर्स के पीछे उनके zombie गुलाम आ जाते हैं, वैंपायर और zombie की टोली रास्ते पर कत्लेआम करते हुए आती है और कोई भी जान नहीं पाता है। सब्जी मसालेदार होना एक बात है, लेकिन यहां तो सब्जी में मसाले के अलावा कुछ है ही नहीं। लेखक ने वैंपायर्स के folklore का तो भूगोल बिगाड़ा ही है, zombies का पूरा इतिहास ही मटियामेट कर दिया है।
अगर इस कॉमिक्स का आर्ट अच्छा नहीं होता, और इस कॉमिक्स में पुरुष पाठकों को रिझाने वाली नग्नता नहीं होती, तो इस कॉमिक्स को शायद ही कोई पसंद करता।
कुल मिलाकर कॉमिक्स पैसे की बर्बादी है और इससे अच्छा की पाठक गौरव श्रीवास्तव की आर्ट बुक खरीद ले।
My verdict – 2/10 (2 for art, cleavage and nudity)
रोचक समीक्षा। हाँ, कॉमिक्स को केवल मनोरंजन तक रहने की बात पर सहमत नहीं हूँ। यह साहित्य का एक माध्यम है जिसे विचारोत्तेजक भी होना पड़ेगा।
Bhai verdict padhke hansi nahi ruk rahi😂
नग्नता तो नेटफ्लिक्स की तरह डाली गई है।
अरे भाई 😂😂
आप तो भिगो भिगो के जूते मार रहे हो।
वैसे मैं आपसे सहमत हूं की यहां भी लेखक ने अपनी वामपंथी विचारधारा दिखाने से पीछे नहीं हटे।
आईएसआईएस जैसे आतंकी संगठन की तुलना हिंदू संगठनों से कर रहे है इंडिरेक्टली।
हालांकि किसी भी हिन्दू या हिंदुत्व व राष्ट्र के प्रति समर्पित संगठन का नाम नहीं लिया परंतु इनका उद्देश्य यही था।
अब राहुल गांधी वाली बुद्धि लगाएंगे तो यही सब दिमाग में आएगा 🤣
बस इसमें नग्नता या थोड़ा अच्छा आर्टवर्क न होता तो ये लेने लायक कतई नहीं है।
Maine ye review religious bias ke saath nahi likha lekin tab bhi mujhe is comics ka agenda saaf dikh gaya. Agenda hata bhi de to bhi comics mein story bahut mamooli lagi