This poem is written by Devendra Gamthiyal who goes by the pen name of “Nishpran”. Nishpran means lifeless which is in stark contrast to his poetry.
Mr. Gamthiyal hails from uttarakhand and is a comic book nerd, a prolific writer and an ardent student of history.
वो सोखियाँ वो बालपन इन हवाओं का,
रास्ता देखे बहारों में बहती हवाएँ।
उमड़ती घरघराती ये तेज़ हवाओ का काफिला
मौसम को आज फिर से शरारत सूझी है।
सूरज छुप रहा है काले मेघों के आंचल में
उसे लगा है पता कि कोई आने वाला है।
मिल रहे हैं मेघ फिर से कड़कड़ाहट कर
धीरे धीरे उनके आँसुओं की बूंदे बता रही हैं।
धीरे धीरे धरती से मिलन हर एक बूंद का
फिर से उसे नहला रही है।
सड़कें नदी नाले और मेरे घर की देहरी
खुश है आज पानी के इन नर्म थपेड़ों से।
सोच रहा हूँ हर एक लम्हें में चल रही हलचल को
जीवन मे चलती हर कश्मकश को।
क्यों नहीं निकलता खुद भी आसमान के नीचे
बारिश की बूंदों में नर्म हवाओ के साथ।
चाह है वही जो सोचता हूँ
बंधा हूँ एक और भ्रमजाल में।
समय बीत रहा है मैं खड़ा हूँ
“निष्प्राण” देखता सुनता वो मधुर आवाज।
जो बुलाती है दिखाती है सपने हज़ार
न जाने क्यों है सवाल है अनसुलझे।
बारिश ने न जाने कैसे तूफान ला दिए हैं
बाहर पानी है भीतर पानी है।
न मैं सूखा हूँ न मैं गीला हूँ।
न खुश न उदास न कोई भाव है
है शून्य सब कुछ शून्य संसार है।
है धरा भी दूर है गगन भी दूर
दूर तू भी दूर आकार है।
साथ भी हूँ दूर भी हूँ
खुद से कैसी मेरी हार है।
“निष्प्राण” हूँ निष्प्राण संसार है
अजीब कश्ती अजीब ये बरसात है।
Devendra “nishpran” gamthiyal