भारतीय कॉमिक्स इंडस्ट्री, लॉकडाउन के बाद मानो ताला तोड़ के किसी कैद से बाहर आ गई है। जहा एक और राज कॉमिक्स दो या तीन फाड़ (तीसरा फाड़ अमेरिकन प्रिंटर में ink ख़त्म होने के चलते फसा हुआ है) होने के बाद फिर से कॉमिक्स जगत पर दबदबा बना रही है, वही कॉमिक्स इंडिया नाम की स्टार्टअप ने तुलसी, राधा और मनोज कॉमिक्स को पुनर्जीवन देने के लिए किताबो के कब्रिस्तान को खोद दिया है। शायद यह लॉकडाउन कॉमिक्स जगत के लिए एक वरदान सा बन कर आया है। खैर, कॉमिक्स इंडस्ट्री का भविष्य तो नए युग के साथ ताल मेल बैठाता उसका कंटेंट ही तय करेगा किंतु यह स्पष्ट है कि भारतीय कॉमिक्स इंडस्ट्री का बेड़ा गर्क तय है अगर फिर आया बांकेलाल जैसी कॉमिक्स दुबारा बनती है।
In the name of comics, this is a poor attempt to cash into a tragedy like corona pandemic and needs to be called for it’s insensitivity.
तो बात करते है कॉमिक्स की
1. कथानक
कहानी बेहद लचर है और चुटकुले जबरदस्ती ठूंसने की कोशिश की गई है। प्रथम 2-3 पृष्ठ के बाद कॉमिक्स का humour दम तोड़ देता है। साथ ही कई ऐसे elements भुला दिए गए है जो बांकेलाल कॉमिक्स को एक laugh riot बनाते थे। जैसे की सेनापति मरखप, जिसे हमेशा बहादुरी की डींगे हाकने वाले एक डरपोक एवं कायर सेनापति के रूप में पेश किया गया। एक फ्रेम में मरखप जी भोकाल बन के एक ही तलवार से, एक ही फ्रेम में तीन दुश्मन सैनिकों को काट देते है।
कहानी की सबसे बड़ी कमी covid related jokes है। लेखक द्वारा pulse oximeter, x ray, oxygen concentrator इत्यादि के हास्यास्पद प्रारूप दिखाने की कोशिश की गई है किंतु इनमे से कोई भी उपकरण legendary ‘तेरी फू की फू’ की परछाई तक को छूने मे सक्षम नहीं होता है।
वाही जी द्वारा रचित राक्षस वाला साइड प्लॉट भी बेहद साधारण बना है। कुल मिला के यह प्रतीत होता है की वाही जी की कलम का हास्य अर्चना पूरन सिंह के forced laughter जैसा कुंद हो गया है।
2. चित्रांकन
प्रेम गुणावत जी का चित्रांकन सरल है और काफी हद तक बेदी जी के रचे किरदारों के साथ न्याय करता है। हालाकि मुझे व्यक्तिगत तौर पे सुशांत पंडा जी का काम भी पसंद था जोकि बांकेलाल को एक नया स्वरूप देता था। फिर भी चित्रांकन में मुझे कोई भी शिकायत नहीं हुई।
3. Comics Quality
32 page की बिग साइज कॉमिक्स मुझे बहुत अधिक पसंद नहीं क्युकी उसको अलमारी में रखने में दिक्कत आती है। राज कॉमिक्स का स्टैंडर्ड स्वरूप या फिर आज कल मार्केट में प्रचलित इंटरनेशनल लॉन्ग साइज फॉर्मेट ज्यादा जचता है। अब फिर आया बांकेलाल मेरे मौजूदा बांकेलाल कॉमिक्स के टावर में फिट ही नहीं होती है और इसलिए मुझे यह पसंद नही।
Matt paper का प्रयोग RCMG द्वारा किया गया है जोकि कॉमिक्स की फील को कम करता है।
Verdict : 1/10
इस कॉमिक्स को पढ़ के मन में बार बार यही विचार आता है की आखिर ‘फिर क्यों आया बांकेलाल’. चित्रांकन को हटा दे तो यह कॉमिक्स शुरू से अंत तक कचरा है और बांकेलाल की legacy को खराब करती है। मैं तो इसे बांकेलाल canon का भाग ही मानने से इंकार करूंगा और अगली बांकेलाल कॉमिक्स का इंतजार इस उम्मीद में करूंगा की शायद अगली कॉमिक्स मुझे कुछ पल खुशी के दे जाए।
तब तक के लिए बांकेलाल की पुरानी कॉमिक्स पढ़ के ही ‘ही ही ही ही’ किया जाए।