धर्म! बेहद नाजुक होता है यह धर्म. किसी का गीत संगीत से आहत हो जाता है, तो किसी का मात्र एक चित्र से। इस दुनिया में सैकड़ों धर्म है कुछ छोटे, कुछ बड़े, कुछ शक्तिशाली, कुछ विलुप्त लेकिन एक धर्म ऐसा भी है जो समावेशी है, जहाँ हर विचार का आदर होता है, सम्मान होता है क्योंकि उस धर्म का आधार ही है ‘एकम सत विप्रा बहुदा वदंति’ अर्थात There is only one truth, but there may be many ways to find it.
हिंदू धर्म की जो सबसे बड़ी खासियत है वह यह है की हिंदू धर्म में भगवान रूढ़ियों से बंधा हुआ ऊंचे सिंहासन पर बैठा कोई राजा नहीं है जिसका आदेश मानना अनिवार्य है। हिंदू धर्म में ईश्वर अर्थात भगवान भक्त के वश में होता है, जैसा कि एक बेहद सुरीली मगर अर्थपूर्ण भजन में कहा गया है “भगत के वश में है भगवान।”
हिंदू धर्म में ईश्वर अर्थात भगवान किसी का सखा है, तो किसी का भाई, किसी का पिता है, तो किसी का पुत्र, किसी का प्रेमी है तो किसी का इष्ट। भगवान वह रूप धरता है जिस रूप में भक्त उसे देखना चाहता है उसे पाना चाहता है।
हिन्दू धर्म मे ईश्वर का चित्रण भक्त की कल्पना शक्ति पर निर्भर होता है। कोई मिट्टी में उकेर देता है तो कोई संगमरमर में क्योंकि भगवान कृष्ण ने गीता में बताया था कि पूरा ब्रह्मांड उनमे है और वह इस ब्रह्मांड के हर कण में। In fact Hinduism is the only religion that proclaims the existence of God even at sub-atomic level.
जिन्होंने धर्म ग्रंथों, वेदों एवं पुराणों इत्यादि का अध्ययन किया है, वह आदरणीय श्री नारद मुनि जी के हास्य, व्यंग एवं वाक पटुता से भली भांति परिचित होंगे। वह अक्सर देवी देवताओं विशेषकर भगवान विष्णु से हास्य व्यंग करते हुए दिखाए जाते हैं जिससे यह साफ प्रतीत होता है कि हमारे भगवान इन छोटे-मोटे हंसी मजाक से व्याकुल अथवा आहत नहीं होते है।
किंतु परंतु कुछ निहायत ही नासमझ लोगों ने धीरे-धीरे करके हिंदू धर्म की समावेशी परंपरा को असहिष्णु बनाना शुरू कर दिया है। उसी श्रृंखला में आज इन्हें बांकेलाल नामक एक काल्पनिक पात्र के कॉमिक्स कवर पर शिवजी के चित्रण से आपत्ति होने लगी। प्रकाशक के ऊपर दबाव दिया जाने लगा कि वह इस कवर को बदलें अन्यथा उसका बहिष्कार किया जाएगा। यह तो मात्र प्रथम चरण है, इसके बाद आएगी ईश्वर के नाम पर की जाने वाली हिंसा क्योंकि यह वही सोच है जिसने विश्व आतंकवाद के रूप में पूरी धरती को परेशान कर रखा है।
आखिर बांकेलाल कॉमिक्स के उस कवर में आपत्तिजनक क्या था? क्या यह की एक शरारती बच्चे ने भगवान शिव के दूध के गिलास में एक मेंढक डाल दिया या फिर यह कि भगवान शिव उस मेंढक को देखकर चौक पड़े? मैंने उस चित्र को कई बार देखा बल्कि मैंने वह कॉमिक दर्जनों बार पढ़ी है। इन रणबांकुरे को उस कामिक्स में कहानी के माध्यम से हिंदू धर्म की दिखाई गई खूबसूरती नजर नहीं आई, जहां भगवान धरती पर विचरण करते हुए अपने प्रिय भक्तों के घर आकर उनका आतिथ्य स्वीकार करते हैं। उन्हें वह प्रेम नजर नहीं आया जिसके तहत भक्त अपने भगवान को अपने समक्ष पाकर उनकी सेवा में लग जाता है। उन्हें शिव जी का क्रोध नहीं दिखा जो शाकाहारी भगवान शिव जी के दूध में मेंढक के पाए जाने पर प्रकट होता है और उन्हें भगवान शिव का अपने क्रोध पर संयम भी नहीं दिखा जो वस्तुस्थिति को समझने के बाद श्राप को आशीर्वाद मैं बदलने की शक्ति रखता है। जी नहीं, इन धर्म के ठेकेदारों को उस कथा में निहित हिंदू धर्म की समावेशी परंपरा एवं हिंदू धर्म का निश्चल रूप नजर नहीं आया बल्कि वह तालिबानियों की तरह अपने भगवान का तथाकथित अपमान महसूस करके बहिष्कार का झंडा लेकर खड़े हो गए। इस प्रकरण से दबाव में आकर कॉमिक प्रकाशक ने कवर बदलने का निर्णय तो ले लिया लेकिन इस निर्णय के दूरगामी परिणाम कितने भयानक होंगे यह इन धर्म के ठेकेदारों को एहसास भी नहीं है। इन मूर्खों ने अपनी मूर्खता का परिचय देते हुए आज हिंदू धर्म का ना सिर्फ अपमान किया है बल्कि यह भी दिखाया है कि हमारे शिव शंकर महादेव, जिनका तीसरा नेत्र खोलने के क्षण भर में पूरे सृष्टि का विनाश संभव है, वह एक चित्र से भयभीत होते है। इन्होंने यह भी दर्शाया कि हिंदू धर्म एवं अन्य धर्मो में कोई अंतर आज की तिथि में अगर रह गया है तो वह यह है कि उनके हाथों में एके-47 मौजूद है और हमारे हाथों में नहीं।
कुछ महानुभावों ने यह भी कहा की यह आस्था का विषय है। जी नहीं, यह आस्था का नहीं अंधी आस्था का विषय है। आस्था तो भक्तों को सही राह दिखाती है। उसके अंदर के व्यसनों को समाप्त करती है, किंतु यह कैसी आस्था है जो एक चित्र के लिए इन लोगों को खून का प्यासा बना देती है? आखिर किधर खत्म होगी इनकी यह खोज?
देहरादून से मसूरी जाते वक्त एक भव्य मंदिर पड़ता है। श्री प्रकाशेश्वर महादेव नाम से। वहां लिखा है कि मंदिर में दान न दीजिये क्योंकि भगवान सबको पैसे देता है उसे आप क्या ही देंगे। ठीक इसी तरह जो सबकी रक्षा करता है, उसकी एक चित्र से रक्षा करने की आप की हैसियत ही नही है। और उसे एक चित्र से कोई आपत्ति भी नही है।
आप सभी के लिए कॉमिक्स का एक पैनल शेयर कर रहा हूँ। आशा है सभी offend होने वाले आस्थावान लोग तत्काल प्रभाव से महादेव का अनुसरण करते हुए मांस और मदिरा का सेवन भी बंद कर देंगे।
अंत मे यही कहूंगा कि अपनी संकीर्ण सोच के लिए मेरे शम्भू को सीढ़ी न बनाइये क्योंकि
“जो न जाने कैलाश है कितने, और कितने केदार
क्या समझेंगे महादेव को वो धर्म के ठेकेदार।”
Beheteern! Dank panchayat se aaya aur end tak padha. Puri tarah sehmat.
Dhanywaad. Is vivaad nei kitna nuksaan kia hai yah aane waale samay mei dikhega aur tab sab pachtayenge.
बहुत ही उम्दा लिखा है।
आप बधाई के पात्र हैं।
Dhanywaad.
बहुत सुंदर… सार्थक बात कही है। ये बस तिल का ताड़ बनाने वाले लोग है जो धर्म के नाम पर उदंडता ही फैलाते हैं। और अपनी उदंडता के चलते अपने धर्म को बदनाम भी यही लोग करते आए हैं।
मैं आपकी हर बात से सहमत हूं। बस एक ही बात समझ में नहीं आई कि आपने जो एक लाईन लिखी, "हिन्दू धर्म और दूसरे धर्मो में फर्क बस इतना है कि उनके हाथों में ak 47 है और हमारे हाथों में नहीं।" तो यहां दूसरे धर्मो कहने की बजाए सीधा सीधा उस धर्म का नाम आपने क्यों नहीं लिखा। कृपया उत्तर ज़रूर दीजिएगा।