आप सबको याद होगा की याली ड्रीम्स की कॉमिक्स कोड नेम अल्फा को लेकर कैसे कुछ लोगो ने विवाद किया था। उस कॉमिक्स के रिव्यू में मैने लिखा था की किसी कॉमिक्स में लेखक द्वारा परोसे गए राजनीतिक पहलू का जवाब देने का सही तरीका यही होगा की आप अपनी राजनीतिक सोच को वैसे ही किसी कॉमिक बुक में उतारे। Adbhut Hindutva वही काम करती है किंतु क्या ये उसमे सफल हो पाती है? Let’s find out.
Credits
- Writer – Alok Sharma
- Illustration and coloring – Husini Esserozi
- Storyboard – Puneet Shukla
- Cover colorist – Jyoti Singh
- Letterer – Parv Bhatt
- Graphic Designer – Harsh Aggarwal
- Editor – Ajitesh Sharma
Artwork
इस कॉमिक्स का कवर और अच्छा बन सकता था अगर कवर पर मूछ वाले ताऊ के हाथ में supernatural सा दृश्य नहीं दिखाया गया होता। कॉमिक्स के अंदर का आर्टवर्क सरल है और पुराने दौर की कॉमिक्सों की याद दिलाता है। चित्रों में रंग भरने का काम बहुत अच्छा किया गया है जिसकी वजह से 70 पेज की इस कॉमिक्स को पढ़ने में बहुत सहजता महसूस होती है। इसके सौम्य आर्ट वर्क की वजह से इसकी कहानी पर और कहानी में निहित संदेश पर ध्यान देने में और आसानी होती है।
Story
कहानी की शुरुआत थोड़ी कन्फ्यूजिंग लग सकती है क्योंकि ब्रह्मा जी को एक अंतरिक्ष प्रजाति के रूप में दर्शाया गया है जो थोड़ा अटपटा सा लगता है, किंतु दोबारा पड़ने पर लेखक क्या दर्शाना चाहता है जा स्पष्ट हो जाता है। इसके आगे कहानी समय और मार्तंड नामक दो किरदारों को लेकर आगे चलती है।
लेखक ने बेहद परिपक्वता से इस कहानी को बुना है। समय और मार्तंड के बीच के संवाद को आगे रखते हुए हिंदू सभ्यता के इतिहास के कुछ अहम पड़ाव से जोड़ने का प्रयास वाकई अद्भुत बना है। वर्ण व्यवस्था मैं उत्पन्न हुए रूढ़िवाद को अनावृत करता प्रसंग आज के समय में बेहद आवश्यक है। न्यायोचित हिंसा को सही ठहराते हुए सम्राट अशोक वाला प्रसंग मुझे खासा पसंद आया क्योंकि वो अहिंसा के आडंबर की कमियां दिखाता है। कॉमिक्स का शुरुआती आधा भाग ना केवल सनातन सोच के असली स्वरूप को सामने लाने का काम करता है बल्कि पढ़ने वाले के मन में एक गर्व की अनुभूति जगाने में भी सफल होता है।
किंतु ऐतिहासिक और काल्पनिक किरदारों के बीच सामंजस्य बना कर चलती ये कहानी चंगेज खान की गाथा में चूक कर जाती है। इतिहास में इस बात के प्रमाण उपलब्ध है की मंगोल दिल्ली तक घुस आए थे लेकिन ये कहानी मार्तंड ऋषि को लेकर चंगेज खान की पराजय का एक अपरिपक्व प्रसंग जोड़ देती है। हालांकि इसके बाद लेखक ने दोबारा कहानी को संभालते हुए महाराणा प्रताप, छत्रपति शिवाजी महाराज और स्वाधीनता संग्राम के प्रसंगों में हिंदुत्व का रंग घोलने का बेहतरीन काम किया है। कहानी का अंत आपको सोचने पर मजबूर कर देता है लेकिन कहानी के अंत में रची गई कविता बेहद साधारण बनी है।
Final Verdict
अद्भुत हिंदुत्व अपनी कुछ खामियों के बावजूद एक वैचारिक रूप से सशक्त गाथा हैं। यह कहानी आपको अपने इतिहास के प्रति गौरवान्वित महसूस कराती है और साथ ही साथ आपको यह सोचने पर भी मजबूर करती है कि क्या आप अपने इतिहास के प्रति निष्ठावान हैं अथवा क्या आपने अपने कृत्यों से हिंदुत्व को कमजोर करने का काम किया है।
वामपंथी विचारकों द्वारा हिंदुत्व को लेकर रचे गए चक्रव्यूह को तोड़ने की दिशा में यह किताब एक अच्छा प्रयास करती है। विचारों के इस संग्राम में केवल सत्य के माध्यम से लड़ना संभव नहीं हो सकता है। ऐसे में सत्य को सहन योग्य अतिशयोक्ति के साथ परोसने के इस प्रकार के प्रयासों का हमें स्वागत करना चाहिए।