स्वयंभू कॉमिक्स के प्रकाशक और परम मित्र भूपेंद्र भाई अक्सर कॉमिक्स जगत से यह प्रश्न करते रहते हैं कि एक कॉमिक्स के लिए क्या ज्यादा महत्वपूर्ण है, कहानी अथवा चित्र। और उनके इस प्रश्न का कोई भी जवाब कभी उन्हें संतुष्ट नहीं कर पाता है। लेकिन मुझे पूरा यकीन है कि Swarn Granth की यह समीक्षा उनकी इस जिज्ञासा को शांत कर देगी। कैसे? आइए पढ़ते हैं।
Credits
- Writer – Sushant Panda, Anurag Kumar Singh
- Art – Sushant Panda
- Inking – Sushant, Sangeeta, Spandan
- Coloring – Basant Panda
- Lettering – Harishdas Manikpuri
- Editor – Sanjay Gupta
Artwork
एक बार फिर अश्वराज और बाकेंलाल की इस कॉमिक्स श्रृंखला का चित्रांकन दिल में गुदगुदी पैदा कर देता है। इस तीसरी कड़ी में भी अश्वमाया और अश्वकीर्ति के चित्र, गीक मन के स्पंदन को उत्तेजित करते है। देवी अश्वर्या भी बेहद खूबसूरत नजर आती है। बाकी चित्र भी काफी अच्छे है और रंग सज्जा भी पिछले अंको की तरह लाजवाब है। एक चित्र में शाहिद अफरीदी की झलक दिखती है और सुशांत पंडा के पुराने कार्य से परिचित लोगो को उसे देख कर जरा भी आश्चर्य नहीं होगा। शेष इस कॉमिक्स में आर्टवर्क के बारे में जितना लिखा जाए कम ही होगा।
Story
कॉमिक्स जगत की 99% आबादी उन लोगों की है जो संवैधानिक रूप से वोट डालने की काबिलियत रखते हैं। ऐसी audience को ध्यान में रखते हुए mature कंटेंट लिखना एक अच्छा व्यवसायिक निर्णय है किंतु द्विअर्थी संवाद लिखना भी एक महीन कला है। इस कॉमिक्स में शुरू में बचकाने से द्विअर्थी संवाद लिखे गए हैं। अश्वकीर्ति को कहीं विदेशी मोरनी तो कहीं रसमलाई कह कर संबोधित किया गया है जोकि काफी lowbrow humour है।
जहां पहले दो अंक में हमें एक अच्छी कहानी पढ़ने को मिली थी, वही इस भाग में बांकेलाल से जुड़े हुए सभी प्रसंग और व्यंग बिल्कुल फ्लैट रचे गए है। बांकेलाल का नाड़े वाले कच्छे में नृत्य करते हुए गाना बहुत forced लगता है। यहां तक की लंबडींग की कविता भी चेहरे पर मुस्कुराहट लाने में असफल रहती है।
बांकेलाल से इतर अश्वराज की कहानी में ज्यादा कुछ घटित नही होता है जिस वजह से ये कॉमिक्स कहानी कम बल्कि नीरस हास्य की एक compilation प्रतीत होती है।
Final Verdict
किसी भी कॉमिक्स में चित्र और कहानी दोनों का अपना महत्व है। लेकिन जहां चित्र केवल उस कॉमिक्स का बाहरी आवरण मात्र है वही कहानी उसकी आत्मा। स्वर्ण ग्रंथ ऐसी ही एक कॉमिक्स है जिसका आवरण तो बेहद सुहाना है लेकिन आत्मा लगभग नदारद। बिना कहानी के कोई भी अच्छा आर्टवर्क मात्र एक आर्ट बुक बनकर रह जाएगा। उम्मीद है कि इस श्रृंखला का अंतिम भाग अश्व सम्राट बांकेलाल स्वर्ण ग्रंथ की इसी खामी को सुधारने का काम करेगा।