जब से राज कॉमिक्स में 3 फाड़ हुआ है, जिस एक किरदार का stock सबसे तेजी से गिरा है वह है बांकेलाल। मनोज गुप्ता जी ने तो बांकेलाल की कहानियों का स्तर इतना गिरा दिया है की यकीन ही नहीं होता कि यह किरदार बेदी जी की कालजयी रचना है। ऐसे में बांकेलाल की कॉमिक्स हाथ में आते ही कोई विशेष उत्सुकता नहीं होती है। कुछ ऐसा ही हाल तब हुआ जब मेरे हाथों में योगनिद्रा (Yognidra) नामक यह कॉमिक्स आई। और अब होने जा रहा है इस कॉमिक्स का dissection.
Credits
- Concept – Vishal Rao
- Writer – Tarun Kumar Wahi
- Art – Sushant Panda
- Inking – Deepak Kumar
- Color – Santosh Kushwaha/ Sangeeta Tripathi
- Lettering – Harishdas Manikpuri
- Editor – Sanjay Gupta
Art
सुशांत पंडा का आर्ट वर्क बांकेलाल पर काफी अच्छा जमता है। बेदी जी की विरासत को सुशांत जी ने अपनी स्टाइल में काफी अच्छा जमाया है। जब सुशांत पंडा ने बांकेलाल की कॉमिक्स में आर्ट बनाना शुरू किया था, तो सालों से बेदी जी का आर्ट वर्क देखने वालों के लिए वह एक alien experience जैसा था, मगर धीरे-धीरे सुशांत जी का आर्टवर्क अब दिमाग पर चढ़ने लगा है। हालांकि अभी भी बेदी जी के चित्रों जैसा सहज हास्य इन नयी कॉमिक्स में नहीं मिलता है। कॉमिक्स में कलरिंग अच्छी है और कुल मिलाकर कॉमिक्स पढ़ते वक्त एक प्रीमियम फील आती है।
Story
योगनिद्रा की कहानी किसी रोलर कोस्टर की सवारी जैसी है। कहीं-कहीं तो हास्य का स्तर काफी अच्छा है लेकिन कुछ कुछ जगह हास्य बिल्कुल निम्न स्तरीय लगता है। विक्रम सिंह का महाछेडूं बनने वाला प्रसंग इस निम्न स्तरीय हास्य की एक बानगी मात्र है। जहां शिक्षाशास्त्री और योगनिद्रा का concept हास्य उत्पन्न करता है, वही काली कलूटी बैगन लूटी नामक चुडैलो वाला प्रसंग भी निराश कर जाता है। योगी ठाकुर की दर्दनाक कहानी एक बार फिर चेहरे पर मुस्कान लाती है लेकिन राजा रामू काका की पुत्री सपन के स्वयंवर का प्रसंग बहुत ठंडा सा लगता है। कहानी का अंत अधूरा सा और जल्दी में लिखा हुआ महसूस होता है। लेकिन आखिरी पृष्ठ अगले भाग में उत्सुकता पैदा करने में भी कामयाब होता है। बांकेलाल और विक्रम सिंह के अलावा केवल योगी ठाकुर का किरदार ही ऐसा बना है जो मनोरंजन करने में सक्षम है।
Final Verdict
योगनिद्रा जहां कला के मामले में प्रभावित करती है वही कथा के मामले में मुख्यतः ढीली पड़ती है। बांकेलाल की कहानियों में एक समय जो हास्य मिलता था, वह लगातार नदारद मिल रहा है। अगर बांकेलाल की कथाओं का यही हश्र रहा, तो आने वाले समय में इस किरदार को पूर्ण विश्राम देना आवश्यक हो जाएगा।