कुछ कहानियां ऐसी होती हैं जो आपके दिल और दिमाग पर इतना गहरा असर छोड़ती हैं कि उन कहानियों को दोबारा पढ़े हुए भले ही दशक हो जाएं लेकिन आपको उस कहानी का एक एक किरदार याद रहता है। इन कहानियों का dissection करना अपने आप में एक चैलेंज होता है क्योंकि आपको अपने अंदर के उस बच्चे को काबू में करना होता है जो आज भी उस कहानी को याद करके मुस्कुरा उठता है। ऐसी ही एक यादगार सदाबहार कहानी है चाचा चौधरी और राका और आज आप पढ़ने जा रहे हैं इस कहानी का dissection
Art
चाचा चौधरी की सभी कॉमिक्स की तरह इस कॉमिक्स का आर्टवर्क भी बहुत सरल है। This distinct style of artwork, जो कि प्राण साहब का सिगनेचर स्टाइल था, आंखों पर काफी easy रहता है। किसी भी फ्रेम में बैकग्राउंड में बहुत जटिल डिटेलिंग करने की कोशिश नहीं की गई है। सरल होने के बावजूद भी यह आर्टवर्क आज भी मन को भाता है। लेकिन मैं यह बात सिर्फ एक फैन होने के नाते नहीं कह रहा हूं। एक समीक्षक होने के नाते भी मैं आज जब इस कॉमिक्स के लिए प्रिंट को उठा कर देख रहा हूं तुम मुझे यह चित्र अपने से लग रहे हैं। हालांकि डायमंड कॉमिक्स ने इस रिप्रिंट में कलरिंग में इतना गंदा काम किया है कि यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी की इस नवीनतम रिप्रिंट में उस खूबसूरत आर्ट वर्क को बदसूरत बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी गई है। कुछ चीजों को जस का तस छोड़ देना ही बेहतर होता है।
Story
चाचा चौधरी की कहानियां अपने सरल हास्य के लिए जानी जाती है। ऐसे में यह एक ऐसी कॉमिक्स थी जिसने प्राण साहब की लेखनी के एक नए रूप को उजागर किया। उन्होंने एक ऐसे वीभत्स सुपर विलेन की रचना करी, जैसा आज भी भारतीय कॉमिक्स में कोई नहीं होगा। कुल्हाड़ी लेकर कत्लेआम मचाने वाला, साबू को भी धूल चटाने वाला यह अमर सुपर विलन था राका। इस कहानी में प्राण साहब ने जिस स्तर की हिंसा प्रस्तुत करी थी, वैसे उस जमाने में कॉमिक्स में शायद ही मिलती थी। खास करके अगर वह कॉमिक्स चाचा चौधरी की हो।
ऋषि चक्रमाचार्य से परिचय कराने के बाद इस कहानी में जो गति आती है तो वह आखिरी पन्ने तक धीमी नहीं पड़ती है। हालाकी कहानी में कुछ ऐसी बातें हैं जो तर्क और विज्ञान से परे हैं, जैसे कि क्लाइमेक्स में साबू और राका का अंतरिक्ष के निर्वात में युद्ध करना, थोड़ा अटपटा सा लगता है लेकिन कहानी की गति उस कमी को कवर कर लेती है। राका की कहानियों में एक बात तो और अच्छी लगती थी वह यह कि इनमें जबरदस्ती की complexities डालने की कोशिश नहीं की गई थी। सीधी सरल और तेज कहानी राका की कॉमिक्स का USP थी।
Final Verdict
चाचा चौधरी और राका भारतीय कॉमिक्स इतिहास में एक मील का पत्थर है। इसे आज के पाठकों का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि आज की तारीख में इस महान किरदार की कहानियां स्वयं डायमंड कॉमिक्स पब्लिकेशन के पास पूर्ण रूप से उपलब्ध नहीं है। इसका रिप्रिंट जो डायमंड कॉमिक्स ने निकाला है उसकी कलरिंग में बहुत सारी गलतियां है। लेकिन फिर भी अगर आपने यह कॉमिक्स नहीं पड़ी है तो आप भारतीय कॉमिक्स जगत के इतिहास के एक बहुत बड़े अनुभव से अछूते हैं।