A poem dedicated to Indian Prime minister Narendra Modi ji. He is just a man with his own flaws but he is the man that deserves the collective respect of the entire nation for what he has done in past 8 years as leader of Indian democracy.
यह सत्य है की तुम पूर्ण नही,
यह सत्य है की तुम न पुरषोत्तम,
पर कलियुग में राम है कब जन्मे,
तुम्ही सर्वश्रेष्ठ, तुम्ही सर्वोत्तम,
तुम विकास पुरुष, साधु फकीर,
है रच रहे तुम सबकी तकदीर,
तुम पुल निर्माता, पाट रहे,
वे खाईयां जो थी बढ़ रही।
जन धन से सबको जोड़ा तुमने,
और आयुष्मान का वरदान दिया,
था सुप्त पड़ा जो विश्वगुरु,
उसका तुमने आह्वान किया,
जीवन ज्योति की तुमने उज्ज्वल,
और उज्जवला किया तुमने जीवन,
सर पर बेघर के छत डाली,
और स्वच्छता का भी ज्ञान दिया,
आत्मनिर्भर और स्वावलंबी,
जिसने भी स्वप्न संजोया था,
उसके स्वप्नों को पंख दिए,
मुद्रा से स्वप्नों को गतिमान किया,
रक्षा की और सुरक्षा दी,
आतंकवाद के दंभ को तोड़ दिया,
लांघ के हर सीमा सरहद,
तुमने हमे वो अभिमान दिया।
हा लांछन भी तुमने झेले,
और सहा तिरस्कार भी तुमने,
पर डिगे नही कर्तव्य पथ से,
तुम डटे रहे अपने हठ पे,
कलयुग की बंदिश भी थी,
मध्यमार्ग भी चुनने है पड़े,
पर राष्ट्र हित में लिए कदम,
अपमानो से भी तुम नही डिगे,
जो ढूंढते है तुम में खामी,
उनसे ये प्रश्न कवि करता है,
कलयुग की काली छाया में,
सतयुग सा कौन ही बचता है,
खुद से अपने सब प्रश्न करे,
खुद को ही कलुषित पाएंगे,
इस कलयुग में तुमसा नायक,
हम और कहां से लाएंगे,
क्युकी अब राम नही होते,
और कृष्ण भी अब नही आते है,
इंसानों की इस काली दुनिया में,
चलो मोदी में विश्वास जगाते है।