पिछले कुछ समय में बांकेलाल की जितनी भी कॉमिक्स आई है उन्हें पढ़ने के बाद सच कहूं तो मुझे डर लगने लगा है। बांकेलाल की कोई भी नई कॉमिक्स खरीदने और उसे पढ़ने के पीछे अब सिर्फ एक कारण रह गया है और वह है dissection. ऐसा इसलिए क्योंकि बांकेलाल की कहानियां लगातार निराश करती आ रही है। फिर आया बांकेलाल से जो प्रताड़ना मिलनी शुरू हुई थी क्या उसमें सर्वमनोकामना सिद्धि और मिश्रण करेगी या फिर बांकेलाल की कहानियों पर पाठक के विश्वास को दोबारा जागृत करने का काम करेगी, आइए जानते हैं इस dissection मे।
Credits
- Writer – Tarun Kumar Wahi/Anurag Singh
- Art – Sushant Panda
- Inking – Deepak Kumar
- Coloring – Santosh
- Lettering – Nishant Parashar/Harishdas Manikpuri
- Editor – Sanjay Gupta
Plot
बिल्ली के भाग्य से छींका फूटता है और बांकेलाल को दर्शन हो जाते हैं साक्षात सर्वमनोकामना सिद्धि देवता के। क्या देवता बांकेलाल की मनोकामना को पूर्ण कर पाते हैं या एक बार फिर शिव जी का वरदान बांकेलाल के बनते हुए काम बिगाड़ देता है? इसी कहानी को कहती है यह कॉमिक्स
Art
सुशांत पंडा धीरे-धीरे करके बांकेलाल के आर्ट वर्क का दूसरा नाम बनते जा रहे हैं। इस कॉमिक्स में भी चित्र हास्य से भरपूर है और कलरिंग से उनकी खूबसूरती और निखर कर आती है। सबसे अच्छी बात यह है कि सुशांत पंडा द्वारा बेदी जी के आर्ट वर्क की नकल उतारने का प्रयास नहीं किया जा रहा है बल्कि बांकेलाल के संसार को अपने vision मे रचने का प्रयत्न किया गया है। कुछ फ्रेम्स में किरदारों के चेहरे बिल्कुल ब्लैंक बने हैं जैसा कि सुशांत पंडा द्वारा पहले भी कई कॉमिक्स में किया जा चुका है। इस आलस के लिए अंक काटना तो बनता है। कॉमिक्स में एक जगह बांकेलाल को मोटर गाड़ी सरीखा वाहन चलाते दिखाया गया है जोकि थोड़ा अटपटा सा लगता है। इन कमियों के बावजूद कुल मिलाकर आर्टवर्क इस कॉमिक्स की शक्ति है।
Story
बांकेलाल की कॉमिक्स की सबसे खास बात होती है उसके अजीबोगरीब किरदार। इस कहानी में भी वैसे ही किरदार भरे पड़े हैं। पहले पन्ने से ही हास्य व्यंग्य का जो सिलसिला शुरू होता है वह आखिरी पन्ने तक ऊंच-नीच के बावजूद लगभग बरकरार रहता है। इस कहानी में कोई भी राक्षसी किरदार नहीं है जोकि इस कहानी को बांकेलाल की कहानियों में लगातार चले आ रहे ट्रेंड से अलग करता है। काफी समय बाद बांकेलाल की कहानी में कुछ अच्छे punches देखने को मिले हैं। कहानी की गति काफी तेज है जिस वजह से कहानी कहीं भी शिथिल नहीं पड़ती है। कहानी का अंत व्यंग्य के साथ-साथ एक सीख भी देकर जाता है जोकि बांकेलाल की कॉमिक्स में शायद पहली बार हुआ होगा।
Final Verdict
बांकेलाल के गिरते हुए ग्राफ को यह कॉमिक्स एक नई दिशा देने का दम रखती है। हालांकि पीछे पड़ा भालू सरिखा हास्य अभी भी लापता है मगर एक उम्मीद जगती है कि शायद हमें दोबारा बाकी लाल की अच्छी कहानियां पढ़ने को मिल सकेंगी।