आज़ादी है, आज़ाद नहीं!
आबादी है, आबाद नहीं!
पिंजरे से भले हो निकल चुके,
पर कटे हुए, अब तड़प रहे,
वो ओड़ सफेदी खादी की,
हमें लूट रहे, सब हड़प रहे,
सड़को पे अब भी सोते है,
और भूख से बच्चे रोते हैं,
वो बात करें आकाशों की,
हम दस्त से बचपन खोते है,
गलियों में आबरू लुटती है,
और बेटियां कोख में मरती है,
क्या इंसान अब तो देवी भी,
यहाँ आने से भी डरती है,
वो जात-धर्म का खेल रचे,
हम काट रहे है अपनों को,
देखे जो अमर शहीदों ने,
वो लूट रहे उन सपनो को,
है देश हुआ अब खंडित है,
बिहार-मराठा लड़ते है,
वो गीत एकता के जो थे,
बस पन्नो में अब सड़ते है,
अब तो नेता ही गुंडा है,
और गुंडे बन गए नेता है,
खद्दर तानाशाह जुल्म करे,
और खाकी रिश्वत लेता है,
हर बरस ये दिन जब आता है,
सीना ठोके हम गाते है,
उड़ने की बातें करते है,
दलदल में धसते जाते है,
बस क्रिकेट के हरे मैदानों में,
देशप्रेम अब ज़िंदा है,
आज़ादी का जश्न तो फ़िल्मी है,
सच है के हम शर्मिंदा है.
Home » आज़ादी है, आज़ाद नहीं!
आज़ादी है, आज़ाद नहीं!
Archit Srivastava
Dr Archit Srivastava aka Archwordsmith is a practicing doctor, writer and poet. He has penned over 300+ poems and stories over 26 years from a tender age of 10 years.
Share This
Previous Article
Divyakavach (दिव्य कवच) - Less story, more introduction
Next Article