After 3 years of not writing a word, when I finally decided to pick up my pen, I was lost. The words were non existent and the rhymes were blank. In such a state of mind, I surrendered my self in the feet of one who has to power to destroy. I prayed and he listened. His third eye opened inside my mind and wiped the slate clean. Gone were the cobwebs of past trauma and reborn was a poet. This was in October 2021… a lot has changed and all for the better.
This poem was born out of the blessings of Mahadev… and to him it must be offered.
महीनों से यह शांत है,
मन मगर अशांत है,
सूखती स्याही की धारा,
बहने को नितांत है,
शब्द पन्नों में अगर,
दू उकेर पर मगर,
धुन कोई बनती नहीं,
सुर भस्म मुर्दाघर,
छटपटाहट, छटपटाहट,
मन के भीतर बौखलाहट,
काव्य रचना एक लक्ष्य,
चिथड़े पन्ने, ना कोई राहत।
क्यों कलम यह सुस्त है,
मन कवि क्यों सुप्त है,
मार्ग जो कर दे प्रशस्त,
वह गुरु क्यों गुप्त है।
व्याकुल है व्याकरण,
ढूंढती कवि की शरण,
कवि स्वयं भटकता,
कर रहा तेरा स्मरण।
हर-हर महादेव, हर-हर महादेव,
अपने भक्तों का मान रख ले,
हर-हर महादेव, हर-हर महादेव,
प्राण मृत कलम में भर दे,
फिर से पुनः बहने लगे,
शब्दों की तेज धारा,
कागज पर फिर सजने लगे,
वह विलुप्त ज्वलंत अंगारा,
प्रतिबिंब पुनः दिखा सके,
कवि रचे वे रचनाएं,
ले नाम तेरा नीलकंठ,
विषपान सबको कराएं,
फिर प्रेम सजे, भक्ति हो, शक्ति हो शब्दों में,
जयचंदो से युद्ध करने, देशभक्ति हो शब्दों में,
तेरा त्रिशूल भी मेरा काव्य बने,
तेरा तांडव भी मेरी रचना हो,
मेरे शब्द शब्द से त्रिनेत्र खुलें,
हर पंक्ति में तेरी अर्चना हो।