Hello Comic Nerds
कभी-कभी पुरानी कॉमिक्सो के पिटारे में से कोई ऐसी कॉमिक्स निकल ही आती है जो आपने कभी भी ना पढ़ी हो। और कभी कभी उस कॉमिक्स को पढ़ने के बाद आप अपने आप से यही सवाल पूछें कि आखिर पढ़ा क्यों।
ऐसी ही एक दुर्लभ कॉमिक्स का आज मैं करने जा रहा हूं dissection.
Credits
- Writer – Mahesh Dutt Sharma
- Art – Ajeet Vasaikar
- Editor – Gulshan Rai
Plot
अग्निपुत्र अभय और लायनमैन (LionMan) कहानी है हीरक देश की राजधानी इंद्रप्रस्था में अपराधियों के बीच आतंक बन चुके एक शेर मानव की। यह शेर मानव कहीं भी प्रकट हो जाता है और अपराधियों का काल बनकर विलुप्त हो जाता है। इस शेर मानव को कैसे ढूंढते हैं अग्निपुत्र अभय, और कैसे करते हैं उसका सामना इसी की कहानी है यह कॉमिक्स।
Art
कहानी में चित्रांकन अजीत वसईकर का है। उनकी चित्रांकन शैली कई जगह पुरानी फैंटम की कॉमिक्स जैसा feel देती है। लेकिन कई पैनल्स में उनके बनाए गए चेहरे, विशेषकर अभय का चेहरा बेहद अजीब सा लगता है।
Story
अब बात करते हैं इस कॉमिक्स की कहानी की। यह कॉमिक्स एक आईना है जिसमें देख कर आपको समझ में आ जाएगा की अग्निपुत्र अभय क्यों पाठकों के मन में जगह बनाने में विफल रहे। चलिए एक-एक करके बात करते हैं इस कॉमिक्स में लिखी गई बकवास की।
- कॉमिक्स में सुपर हीरो अभय द्वारा लायनमैन (LionMan) को पकड़ने के लिए की जा रही हल युक्ति उसकी बुद्धि पर संदेह पैदा करती है। जब कॉमिक्स की शुरुआत में ही दिखा दिया कि लाइनमैन अपनी आंखों से किरण छोड़कर एक हेलीकॉप्टर क्रैश करा सकता है, तो उसे पकड़ने के लिए ट्रेंड बाघो का इस्तेमाल करने का कोई तुक नहीं बनता है। और यही होता है। लायन मैन चुटकियों में उन बाघो को कूट देता है।
- अभय के पास सुपरबाइक रानी है किंतु पूरी कहानी में रानी की वैज्ञानिक शक्तियों का कोई प्रयोग नहीं किया गया है।
- कहानी के अंत में अग्निपुत्र भैया प्रकट होते हैं और लायनमैन को मशीन की मदद से चट्टान पर पटक कर उसका सारा खून निकाल देने की सलाह अभय को देते हैं। काश कि लेखक ने अपने फैमिली डॉक्टर से ही कुछ ज्ञान ले लिया होता।
- कहानी के अंत में यह बताया गया है कि एक पशु चिकित्सक ने एक घायल व्यक्ति की जान बचाने के लिए उसे शेर का खून चढ़ा दिया था जिससे वह लायनमैन बन गया। आश्चर्यजनक रूप से अग्निपुत्र भैया को यह बात पहले से ही पता थी। बस इसीलिए उन्होंने लाइनमैन को पटक कर उसका सारा खून निकालने का सुझाव दिया।
An editorial crime scene
अंत में मैं आता हूं इस कॉमिक्स के संपादक श्री गुलशन राय जी के काम पर। इस कॉमिक्स के संपादन में बहुत सारी गलतियां हैं। कहीं किसी किरदार का डायलॉग किसी और के चित्र पर लगा है, तो कहीं हीरक देश में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान की मौजूदगी दिखाई गई है।
लेकिन इस कॉमिक्स के एक फ्रेम में मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया कि कोई इतना संवेदनहीन कैसे हो सकता है।
पृष्ठ 29 पर अभय को पता चलता है कि लायनमैन एक सिनेमाघर में गैरकानूनी फिल्म चलती देख कर उसे आग लगा दी है। उसी पृष्ठ पर एक पैनल में जलता हुआ सिनेमाघर दिखाया गया है। उस सिनेमा घर का नाम उपहार है और उसमें लगी फिल्म का शीर्षक बॉर्डर है। जिन्हें नहीं पता वह गूगल पर इन दो शब्दों को साथ में डाल कर देख सकते हैं कि मैं क्यों संपादक स्तर पर मंजूर किए गए इस गुनाह से आहत हूं।
Final Verdict
कुल मिलाकर यह एक बहुत ही निम्न दर्जे की कॉमिक्स है और इसमें की गई editorial crime बिल्कुल भी क्षमा योग्य नहीं है।
This comics can be treated as a case study in
- Poor Story.
- Poor Character development.
- Criminally poor editing.