Hello Comic nerds
कुछ तो समस्या है। क्या है यह अभी समझ में नहीं आ रहा है लेकिन एक बात तो तय है कि कुछ तो समस्या है।
शायद एक पाठक के रूप में मेरी सोच परिपक्व हो गई है या फिर एक लेखक के रूप में वाही साहब की लेखनी बूढ़ी हो गई है। कोई तो बात है की एक के बाद एक लगातार बांकेलाल की बेहद निम्न स्तरीय कॉमिक्स राज कॉमिक्स बाय मनोज गुप्ता के प्रकाशन से आ रही है।
Let’s dissect
आज मैं करने जा रहा हूं बांकेलाल की ताजातरीन कॉमिक्स ऊंच-नीच का पापड़ा का dissection.
Plot
ऊंच-नीच का पापड़ा बांकेलाल की खेल खेल Trilogy का तीसरा और अंतिम भाग है।
कहानी एक बार फिर बांकेलाल के गिरगिट और गिरगिटी से मिलने और उनके साथ एक और खेल खेलने से शुरू होती है। क्या इस बार बांकेलाल खेल को जीतकर अपने राजयोग को प्राप्त कर पाता है या फिर एक बार फिर विक्रम सिंह की पुच्ची पाकर मन मसोसता रह जाता है। इसी की कहानी है उच नीच का पापड़ा।
Credit Roll
- Story – Tarun Kumar Wahi
- Art – Prem Gunawat
- Editor – Manoj Gupta
Story
कहानी चिर परिचित बांकेलाल की कहानी है जहां पर हमेशा की तरह एक विचित्र नाम वाले ऋषि, एक विचित्र शक्तियों वाले राक्षस, कुछ रहस्य इत्यादि की एक खिचड़ी बनाई गई है जिसके अंत में सदा की तरह बांकेलाल की योजना की टांग टूट ही जानी है। हालांकि यह बांकेलाल की कॉमिक्स का हमेशा से फार्मूला रहा है लेकिन जो बात बांकेलाल की कॉमिक्स तो विशेष बनाती रही है वह होती है उन कहानियों में निचोड़ कर डाला गया हास्य। लेकिन एक बार फिर वाही जी की कलम से निकली यह कहानी हास्य के पैमाने पर बहुत फ्लैट पड़ती है।
पीछे पड़ा भालू, जादुई मुहावरे, ढपोरशंख इत्यादि की तुलना में कहानी हास्य विहीन लगती है।
राजा विक्रम सिंह द्वारा बांकेलाल के साथ एक जगह जो व्यवहार दिखाया गया है वह विक्रम सिंह और बांकेलाल के रिश्ते से बिल्कुल इतर सा है। यही छोटी-छोटी बातें वाही साहब की लेखनी पर सवाल खड़ा करने लगी है।
Art
बांकेलाल की इन नई कॉमिक्स में अगर मुझे कोई बात पसंद आती है तो वह प्रेम गुनावत जी की चित्रकला है। एक बार फिर उन्होंने बेदी जी की iconic art के समकक्ष चित्रांकन किया है। इसलिए कॉमिक्स के आर्ट इत्यादि से मुझे कोई भी परेशानी नहीं है।
Final verdict
कुल मिलाकर खेल खेल श्रृंखला बेहद नीरस श्रृंखला साबित हुई है जिसने बांकेलाल की कॉमिक्स के स्तर को गिराने का काम किया है। फिर आया बांकेलाल से शुरू हुआ यह सफर अब धीरे-धीरे करके और थकावट भरा होता जा रहा है और शायद अब जरूरत है कि बांकेलाल की कहानियों की बागडोर किसी अन्य लेखक को दी जाए।
Skip this
यह कॉमिक्स आप तभी खरीदे अगर आप कलेक्शन के शौकीन हो या फिर आप मेरी तरह रिव्यू करना पसंद करते हैं, अन्यथा इसे खरीदने की जगह एक बार फिर पुरानी बांकेलाल की कहानियों को पढ़ लीजिए ताकि आपको आनंद की प्राप्ति हो।
मुझे तो बांकेलाल तभी पसंद आता है जब उसे छः सात महीने के गैप में पढूँ वर्ना मजा नहीं आता है। वैसे हास्य लिखना काफी मुश्किल काम है।