किसी उपन्यास या किसी नाटक का कॉमिक्स रूपांतरण करना काफी जटिल कार्य है। चित्रगाथा कॉमिक्स ने अपनी पारी की शुरुआत एक नाटक के कॉमिक्स रूपांतरण से की, जिसमें वह काफी सफल रहे, मगर यही बात फ्लाईड्रीम्स कॉमिक्स के दूसरे अंक 11:59 के लिए नहीं कही जा सकती जो कि शायद किसी उपन्यास का रूपांतरण है। ऐसा मैं क्यों कह रहा हूं इसे जानने के लिए पढ़ते जाइए यह dissection
Credit
- Writer – Mithlesh Gupta
- Art – Shahnawaz Khan
- Lettering – Nishant Parashar
- Editor – Anurag Kumar Singh/Shahnawaz Khan
Story
किसी भी कहानी के लिए एक आगाज और एक अंत आवश्यक होता है। लेकिन साथ ही साथ आवश्यक होता है की आगाज और अंत के बीच में कहानी की मूल आत्मा पाठक को दिखाई दे और उसकी मौजूदगी समझ में भी आए। इस कथानक में ऐसा कुछ भी नहीं होता है। कोई किरदार क्या कर रहा है? क्यों कर रहा है? इन सब बातों का कोई भी उत्तर नहीं है। कहानी केवल भूत प्रेत शैतान इत्यादि को दिखाकर डर बेचने की कोशिश करती है मगर उसमें भी generic horror tropes की वेदी पर बलि चढ़ जाती है। संभवत इसके आगे भी कहानी में कुछ खुलासे होंगे, मगर यह कॉमिक्स एक पाठक के रूप में मुझे बिल्कुल भी उत्सुक नहीं करती है कि मैं अगले भाग का इंतजार करू।
Art
बात करते हैं इस कॉमिक्स के आर्टवर्क की जिसे आर्टवर्क कहना शायद गलत होगा। अगर यह ट्रेस आर्टवर्क भी होता, तो सहन हो जाता, मगर यह क्या है मेरी समझ के परे हैं। कहीं तो यह AI generated लगता है, तो कहीं ऐसा प्रतीत होता है कि स्टॉक इमेज पर फिल्टर लगा दिए गए हो। कलर इफैक्ट्स इतने ज्यादा डाल दिए हैं के चित्रों को समझने के लिए आंखें पन्नों से चिपकानी पड़ती है।
Final Verdict
यह कॉमिक्स निराशा का एक पिटारा है।जहां ना कहानी है, जहां ना चित्रों का कोई सहारा है। ना जाने क्या सोचकर इस कॉमिक्स को फ्लाईड्रीम्स की टीम ने कॉमिक्स की दुनिया में उतारा है